पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१३

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चन्द्रकान्ता सन्तति

पहला भाग

1

नौगढ़ के राजा सुरेन्द्रसिंह के लड़के वीरेन्द्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चन्द्रकान्ता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनना पड़ा। बहुतों की यह राय हुई कि महाराज शिवदत्त का दिल अभी तक साफ नहीं हुआ, इसलिए अब इनको कैद ही में रखना मुनासिब है, मगर महाराज सुरेन्द्रसिंह ने इस बात को नापसन्द करके कहा कि "महाराज शिवदत्त को हम छोड़ चुके हैं। इस वक्त जो तेजसिंह से उनकी लड़ाई हो गई, यह हमारे साथ वैर रखने का सबूत नहीं हो सकता। आखिर महाराज शिवदत्त क्षत्रिय हैं, जब तेजसिंह उनकी सूरत बना बेइज्जती करने पर उतारू हो गए तो यह देखकर भी वह कैसे बर्दाश्त कर सकते थे? मैं यह भी नहीं कह सकता कि महाराज शिवदत्त का दिल हम लोगों की तरफ से बिल्कुल साफ हो गया क्योंकि अगर उनका दिल साफ ही हो जाता तो इस बात को छिप कर देखने के लिए आने की जरूरत क्या थी? तो भी यह समझ कर कि तेजसिंह के साथ इनकी यह लड़ाई हमारी दुश्मनी के सबब नहीं कही जा सकती, हम फिर इनको छोड़ देते हैं। अगर अब भी ये हमारे साथ दुश्मनी करेंगे तो क्या हर्ज है! ये भी मर्द हैं और हम भी मर्द हैं। देखा जाएगा।"

महाराज शिवदत्त फिर छूट कर न मालूम कहाँ चले गए। वीरेन्द्रसिंह की शादी होने के बाद महाराज सुरेन्द्रसिंह और जयसिंह की राय से चपला की शादी तेजसिंह के साथ और चम्पा की शादी देवीसिंह के साथ की गई। चम्पा दूर के नाते में चपला की बहिन होती थी।

बाकी सब ऐयारों की शादी हो चुकी थी। उन लोगों की घर-गृहस्थी चुनार ही में थी, अदल-बदल करने की जरूरत न पड़ी, क्योंकि शादी होने की थोड़े ही दिन बाद बड़ी धूमधाम के साथ कुँअर वीरेन्द्रसिंह चुनार के गद्दी पर बैठाए गए और कुँअर छोड़ राजा कहलाने लगे। तेजसिंह उनके राज-दीवान मुकर्रर हुए और इसलिए सब ऐयारों को भी चुनार ही में रहना पड़ा।