पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१८९

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शेरसिंह-हाँ मालूम है, उन्हें उसी चुडैल ने फंसा रक्खा है जो अजायबघर में रहती है।

कमला-कौन-सा अजायबघर?

शेरसिंह-वही जो तालाब के बीच में बना है और जिसे जड़-बुनियाद से खोद कर फेंक देने का मैंने इरादा किया है, यहाँ से थोड़ी ही दूर तो है।

कमला-जी हाँ, मालूम हुआ, उसके बारे में बड़ी-बड़ी विचित्र बातें सुनने में आती हैं।

शेरसिंह-बेशक वहाँ की सभी बातें ताज्जुब से भरी हुई हैं। अफसोस, न मालूम कितने खूबसूरत नौजवान बेचारे वहाँ बेदर्दी के साथ मारे गये होंगे!

इतने ही में छत के ऊपर किसी के पैरों की आहट मालूम हुई। तीनों का ध्यान सीढ़ियों पर गया।

कमला-कोई आता है।

शेरसिंह-हमें तो यहाँ किसी के आने की उम्मीद न थी, जरा होशियार हो जाओ।

कमला-मैं होशियार हूँ, देखिए, वह आया!

एक लम्बे कद का आदमी सीढ़ी से नीचे उतरा और शेरसिंह के सामने आकर खड़ा हो गया। उसकी उम्र चाहे जो भी हो, मगर बदन की कमजोरी, दुबलेपन और चेहरे की उदासी ने उसे पचास वर्षों से भी ज्यादा उम्र का बना रक्खा था। उसके खूबसूरत चेहरे पर उदासी और रंज के निशान पाये जाते थे, बड़ी-बड़ी आँखों में आँसुओं की तरी साफ मालूम होती थी, उसकी हसरत-भरी निगाहें उसके दिल की हालत दिखा रही थीं और कह रही थीं कि रंज-गम-फिक्र-तरद्दु्द और नाउम्मीदी ने उसके बदन में खून और मांस का नाम नहीं छोड़ा, केवल हड्डी ही बच गई है। उसके कपड़े भी बहुत पुराने और फटे हुए थे।

इस आदमी की सूरत से भलमनसी और सीधापन झलकता था, मगर शेरसिंह उसकी सूरत देखते ही काँप गया। खौफ और ताज्जुब ने उसका गला दबा दिया। एकदम ऐसा घबरा गया जैसे कोई खूनी जल्लाद की सूरत देखकर घबरा जाता है। शेरसिंह ने उसकी तरफ देख कर कहा, "अहा...हा...आप...हैं! आई...ए...!" मगर ये शब्द घबराहट के मारे बिल्कुल ही उखड़े-पुखड़े शेरसिंह के मुँह से निकले।

उस आदमी ने कमला की तरफ इशारा करके कहा, "क्या ये लड़की..."

शेरसिंह-हाँ...आप...(कमला और कामिनी की तरफ देख कर) तुम दोनों जरा ऊपर चली जाओ। ये बड़े नेक आदमी हैं. मुझसे मिलने आये हैं, मैं इनसे कुछ बातें किया चाहता हूँ।

कमला और कामिनी दोनों तहखाने से निकल कर ऊपर चली आई। उस आदमी के आने और अपने चाचा को विचित्र अवस्था में देखने से कमला घबड़ा गई। जी में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगीं। ऐसे कमजोर, लाचार और गरीब आदमी को देख कर उसका ऐयारी के फन में बड़ा ही तेज और शेरदिल चाचा इस तरह क्यों