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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२०२

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का ऐयार है कि दुश्मन के घर में घुसकर भी जरा नहीं डरता और दिन-दोपहर सच्चे को झूठा बना रहा है! ऐसे समय अगर जरा भी उसके चेहरे पर खौफ या तरद्दुद की निशानी आ जाय तो ताज्जुब नहीं कि वह खुद फँस जाय।

तेजसिंह ने रामानन्द को बात करने की भी मोहलत न दी, हँसकर उसकी तरफ देखा और कहा, "क्यों वे! क्या महाराज दिग्विजयसिंह के दरबार को तूने ऐसा-वैसा समझ रखा है! क्या तु यहाँ भी ऐयारी से काम निकालना चाहता है? यहाँ तेरी कारीगरी न लगेगी, देख, तेरी गदहे की सी मुटाई मैं कैसे पिचकाता हूँ!"

तेजसिंह ने फुर्ती से रामानन्द की दाढ़ी पर हाथ डाल दिया और महाराज को दिखा कर एक झटका दिया। झटका तो जोर से दिया मगर इस ढंग से कि महाराज को बहुत हलका झटका मालूम हो। रामानन्द की नकली दाढ़ी अलग हो गई।

इस तमाशे ने रामानन्द को पागल-सा बना दिया। उसके दिल में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगी। यह समझकर कि यह ऐयार मुझ सच्चे को झूठा किया चाहता है, उसे क्रोध चढ़ आया और वह खंजर निकालकर तेजसिंह पर झपटा, पर तेजसिंह वार बचा गए। महाराज को रामानन्द पर और भी शक बैठ गया। उन्होंने उठक रामानन्द की कलाई, जिसमें वह खंजर लिये था, मजबूती से पकड़ ली और एक चूंसा उसके मुंह पर दिया। ताकतवर महाराज के हाथ का चूंसा खाते ही रामानन्द का सिर घूम गया और वह जमीन पर बैठ गया। तेजसिंह ने जेब से बेहोशी की दवा निकाली और जबर्ददस्ती रामानन्द को सुंघा दी।

महाराज––क्यों, इसे बेहोश क्यों कर दिया?

तेजसिंह––महाराज, गुस्से में आया हुआ और अपने को फँसा जान यह ऐयार न मालूम कैसी-कैसी बेहूदी बातें बकता, इसलिए इसे बेहोश कर दिया। कैदखाने में ले जाने के बाद फिर देखा जायगा।

महाराज––खैर, यह भी चलो, अच्छा ही किया। अब मुझसे ताली लो और तहखाने में ले जाकर इसे दारोगा के सुपुर्द करो।

महाराज की बात सुन तेज सिंह घबराये और सोचने लगे कि अब बुरी हुई। महाराज से तहखाने की ताली लेकर कहाँ जाऊँ? मैं क्या जानूँ तहखाना कहाँ है और दारोगा कौन है! बड़ी मुश्किल हुई! अगर जरा भी ना-नुकुर करता हूँ तो उल्टी आँते गले पड़ती हैं। आखिर कुछ सोच-विचार कर तेजसिंह ने कहा––

तेजसिंह––महाराज भी साथ चलें तो ठीक है।

महाराज––क्यों?

तेजसिंह––दारोगा साहब इस ऐयार को और मुझे देखकर घबरायेंगे और उन्हें न जाने क्या-क्या शक पैदा हो। यह पाजी अगर होश में आ जायेगा, तो जरूर कुछ बात बनावेगा, आह रहेंगे तो दारोगा को किसी तरह का शक न होगा।

महाराज––(हँस कर) अच्छा चलो, हम भी चलते हैं।

तेजसिंह––हाँ महाराज, फिर मुझे पीठ पर यह भारी लाश लादे ताला खोलने और बन्द करने में भी मुश्किल होगी।