पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२०७

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तेजसिंह और दारोगा को कहते गये कि तुम दोनों फुरसत पाकर हमारे पास आना।

महाराज के हुक्म की तालीम न हो सकी, क्योंकि दारोगा को कैद कर तेजसिंह अपने लश्कर में ले गये जौर ज्यादा हिस्सा दिन का उधर ही बीत गया था, जैसा कि हम ऊपर लिख आये हैं। जब तेजसिंह लौटकर तहखाने में आये तो ज्योतिषीजी को बहुत सी बातें समझाईं और उन्हें दारोगा बना कर गद्दी पर बैठाया। उसी समय सामने की कोठरियों में से खटके की आवाज आई। तेजसिंह समझ गये कि महाराज आ रहे हैं। ज्योतिषीजी को तो लिटा दिया और कहा कि "तुम हाय-हाय करो, मैं महाराज से बातचीत करूँगा।" थोड़ी देर में महाराज उस तहखाने में उसी राह से आ पहुँचे जिस राह से तेजसिंह को साथ लाये थे।

महाराज-(तेजसिंह की तरफ देखकर) रामानन्द, तुम दोनों को हम अपने पास आने के लिए हुक्म दे गये थे। क्यों नहीं आये? और इस दारोगा को क्या हुआ जो हाय-हाय कर रहा है?

तेजसिंह-महाराज, इन्हीं के सबब से तो आना नहीं हुआ। यकायक बेचारे के पेट में दर्द पैदा हो गया, बहुत-सी तरकीबें करने के बाद अब कुछ आराम हुआ है।

महाराज-(दारोगा के हाल पर अफसोस करने के बाद) ऐयार का कुछ हाल मालूम हुआ?

तेजसिंह-जी नहीं, उसने कुछ भी नहीं बताया। खैर, क्या हर्ज है, दो-एक दिन में पता लग ही जायगा, ऐयार लोग जिद्दी तो होते ही हैं।

थोड़ी देर बाद महाराज दिग्विजयसिंह वहाँ से चले गये। महाराज के जाने के बाद तेजसिंह भी तहखाने के बाहर हुए और महाराज के पास गये। दो घंटे तक हाजिरी देकर शहर में गश्त करने के बहाने से बिदा हुए। पहर रात से कुछ ज्यादा गयी थी कि तेजसिंह फिर महाराज के पास गये और बोले-

तेजसिंह-मुझे जल्द लौट आते देख महाराज ताज्जुब करते होंगे, मगर एक जरूरी खबर देने के लिए आना पड़ा।

महाराज-वह क्या?

तेजसिंह-मुझे पता लगा है कि मेरी गिरफ्तारी के लिए कई ऐयार आये हए हैं, महाराज होशियार रहें। अगर रात भर मैं उनके हाथ से बच गया तो कल जरूर कोई तरकीब करूँगा, यदि फँस गया तो खैर!

महाराज-तो आज रात भर तुम यहीं क्यों नहीं रहते?

तेजसिंह-क्या उन लोगों के खौफ से बिना कुछ कार्रवाई किये मैं अपने को छिपाऊँ? यह नहीं हो सकता।

महाराज-शाबाश! ऐसा ही करना मुनासिब है। खैर जाओ, जो होगा देखा जायगा।

तेजसिंह घर की तरफ लौटे। रामानन्द के घर की तरफ नहीं, बल्कि अपने लश्कर की तरफ। उन्होंने इस बहाने अपनी जान बचाई और चलते हुए। सवेरे जब