पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
201
 


मूँछें चढ़ी हुईं, पोशाक में केवल जाँघिया, मिर्जई और कन्टोप पहने, हाथ में भारी तेगा लिए बड़े ही भयंकर मालूम होते थे। महाराज ने केवल चार जल्लादों को साथ लिया और उसी मामूली रास्ते से तहखाने में उतर गये। महाराज को आते देखकर दारोगा चैतन्य हो गया और सामने आ हाथ जोड़कर बोला, "लाचार महाराज को तकलीफ देनी पड़ी।"

महाराज-क्या मामला है?

दारोगा-वह ऐयार मर गया जिसे दीवान रामानन्दजी ने गिरफ्तार किया था।

महाराज-(चौंककर) हैं, मर गया!

दारोगा-जी हाँ, मर गया। न मालूम कैसी जहरीली बेहोशी दी गयी थी कि जिसका असर यहाँ तक हुआ।

महाराज-यह बहुत ही बुरा हुआ, दुश्मन समझेगा कि दिग्विजयसिंह ने जानबूझकर हमारे ऐयार को मार डाला जो कायदे के बाहर की बात है। दुश्मनों को अब हमसे जिद हो जायगी और वे भी कायदे के खिलाफ वेहोशी की जगह जहर को बरतने लगेंगे तो हमारा बड़ा नुकसान होगा और बहुत आदमी जान से मारे जायेंगे।

दारोगा-लाचारी है, अब क्या किया जाय? भूल दीवान साहब की है।

महाराज-(कुछ जोश में आकर) रामानन्द तो पूरा उजड्ड है! झक मारने के लिए उसने अपने को ऐयार मशहूर कर रखा है, तभी तो वीरेन्द्रसिंह का एक अदना ऐयार आया और उसे पकड़कर ले गया। चलो, छुट्टी हुई!

महाराज की बातें सुनकर मन-ही-मन ज्योतिषीजी हँसते और कहते थे कि देखो कितना होशियार और बहादुर राजा क्या जरा-सी बात में बेवकूफ बना है। वाह रे तेजसिंह, तू जो चाहे कर सकता है।

महाराज ने रामानन्द की लाश को खुद देखा और दूसरी जगह ले जाकर जमीन में गाड़ देने के लिए जल्लादों को हुक्म दिया। जल्लादों ने उसी तहखाने में एक जगह, जहाँ मुर्दे गाड़े जाते थे, ले जाकर उस लाश को दबा दिया। महाराज अफसोस करते हुए तहखाने के बाहर निकल आये और इस सोच में पड़े कि देखें, वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग इसका क्या बदला लेते हैं।

5

ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी से खटके की आवाज आयी। घबराकर उठ खड़े हुए और पीछे की तरफ देखने लगे। फिर आवाज आयी। ज्योतिषीजी दरवाजा खोलकर अन्दर गये, मालूम हुआ कि उस कोठरी के दूसरे दरवाजे से कोई भागा जाता है। कोठरी में बिलकुल अँधेरा था, ज्योतिषीजी कुछ आगे बढ़े ही थे कि जमीन पर पड़ी हुई एक लाश