सामने की तरफ बीस औरतें ढाल-तलवार लगाये, जड़ाऊ आसा हाथ में लिये अदब से अपने सिर झुकाए इशारे पर हुक्म बजाने के तैयार दुपट्टी खड़ी थीं, जिनके बीच में नानक को ले जाकर खड़ा कर दिया गया।
इस दरबार को देख कर नानक की आँखों में चकाचौंध-सी आ गई। वह एक दम घबड़ा उठा और अपने चारों तरफ देखने लगा। इस बारहदरी की जिस चीज पर भी उसकी नजर पड़ती, उसे लासानी पाता। नानक एक बडे अमीर बाप का लड़का था और बड़े-बड़े राजदरबारों को देख चुका था, मगर उसकी आँखों ने यहाँ जैसी चीजें देखों वैसी स्वप्न में भी न देखी थीं। आलों (ताकों) पर जो गुलदस्ते सजाए हुए थे वे बिल्कुल बनावटी थे और उनमें फूल-पत्तियों की जगह पर बेशकीमत जवाहिरात काम में लाये गये थे। केवल इन गुलदस्तों ही को देखकर नानक ताज्जुब करता था कि इतनी दौलत इन लोगों के पास कहाँ से आई! इसके अतिरिक्त और जितनी चीजें सजावट की वहाँ थीं, सभी इस योग्य थीं कि जिनका मिलना मनुष्यों को बहुत ही कठिन समझना चहिए। उन औरतों की पोशाक और जेवरों का अन्दाज करना तो ताकत से बाहर था।
सब तरफ से घूम-फिर कर नानक की आँखें रामभोली की तरफ जा कर अटक गई और वह एकटक उसकी सूरत देखने लगा।
उस औरत ने जो बड़े रोब के साथ जड़ाऊ सिंहासन पर बैठी हुई थी, एक नजर सिर से पैर तक नानक को देखा और फिर रामभोली की तरफ आँखें फेरी। रामभोली तुरन्त अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और सामने की तरफ हटकर सिंहासन की बगल में खड़ी हो हाथ जोड़कर बोली, "यदि आज्ञा हो तो हुक्म के मुताबिक कार्रवाई की जाये? इसके जवाब में उस औरत ने, जिसे महासनी कहना उचित है, बड़े गरूर के साथ सिर हिलाया, अर्थात् मना किया और उस दूसरी की तरफ देखा जो रामभोली की बगल में बैठी थी।
यह बात नानक के लिए बड़े ताज्छुब की थी। आज उसके कानों ने एक ऐसी आवाज सुनी जो कभी सुनी न थी और न सुनने की उम्मीद थी। एक तो यही ताज्जुब की बात कि जो रामभोली उसके पड़ोस में रहती थी, जिसे नानक लड़कपन से जानता था और सिवाय उस दिन के, जिस दिन बजरे पर सवार हो सफर में निकली, जिसे कभी अपना घर छोड़ते नहीं देखा था और न कभी जिसके माँ-बाप ने उसे अपनी आँखों से दूर किया था, आज इस जगह ऐसी अवस्था और ऊँचे दर्जे पर दिखाई दी। दूसरे, जो रामभोली जन्म से गूँगी थी, जिसके माँ-बाप ने भी कभी उसे बोलते नहीं सुना, आज इस तरह उसके मुँह से मीठी आवाज निकल रही है! इस आवाज ने नानक के दिल के साथ क्या काम किया, इसे वही जानता होगा। इस बात को नानक क्योंकर समझ सकता था कि जिस समभोली ने कभी घर से बाहर पैर नहीं निकाला वह इन लोगों में आपस के तौर क्यों पाई जाती है और ये सब औरतें कौन हैं!
नानक को इन सब बातों को अच्छी तरह सोचने का मौका न मिला। वह दूसरी औरत, जो रामभोली के बगल में कुर्सी पर बैठी हुई थी और जिसको नानक ने पहले भी