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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२३४

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महारानी––(धनपति की तरफ देख कर) नानक के कब्जे से किताब निकाल लेना तुम्हारा काम और (रामभोली की तरफ देखकर) किशोरी को गिरफ्तार करके लाना तुम्हारा काम।

बाबाजी––मगर दो बातों का ध्यान रखना, नहीं तो जीती न बचोगी!

दोनों––वह क्या?

बाबाजी––एक तो कुँअर इन्द्रजीतसिंह या आनन्दसिंह को हाथ न लगाना, दूसरे ऐसे काम करना जिसमें नानक को तुम दोनों का पता न लगे, नहीं तो वह बिना जान लिए कभी न छोड़ेगा और तुम लोगों के किए कुछ न होगा। (रामभोली की तरफ देखकर) यह न समझना कि वह तुम्हारा मुलाहिजा करेगा, अब उसे असल हाल मालूम हो गया है, वह हम लोगों को जड़-बुनियाद से खोदकर फेंक देने का उद्योग करेगा।

महारानी––ठीक है, इसमें कोई शक नहीं। मगर यह दोनों भी चालाक हैं, अपने को बचावेंगी। (दोनों की तरफ देखकर) खैर, तुम लोग जाओ, देखो, ईश्वर क्या करता है। खूब होशियार रहना और अपने को बचाना।

दोनों––जो आज्ञा!

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुँअर आनन्दसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं।

जिस समय कुंअर आनन्दसिंह, भैरोंसिंह और तारासिंह तहखाने के अन्दर गिरफ्तार हो गए और राजा दिग्विजयसिंह के सामने लाये गये तो राजा के आदमियों ने उन तीनों का परिचय दिया जिसे सुन राजा हैरान रह गया और सोचने लगा कि ये तीनों यहाँ क्योंकर आ पहुँचे। किशोरी भी उसी जगह खड़ी थी। उसने सुना कि ये लोग फलों हैं तो वह घबरा गई। उसे विश्वास हो गया कि अब इनकी जान नहीं बचती। इस समय वह मन-ही-मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि जिस तरह हो सके, इनकी जान बचाए, इनके बदले में मेरी जान जाय तो कोई हर्ज नहीं, परन्तु मैं अपनी आँखों से न्हें मरते नहीं देखना चाहती, इसमें कोई शक नहीं कि ये मुझी को छुड़ाने आये थे, नहीं तो इन्हें क्या मतलब था कि इतना कष्ट उठाते।

जितने आदमी तहखाने के अन्दर मौजूद थे, सभी जानते थे कि इस समय तहखाने के अन्दर कुँअर आनन्दसिंह का मददगार कोई भी नहीं है, परन्तु हमारे पाठक महाशय जानते हैं कि पण्डित जगन्नाथ ज्योतिषीजी, जो इस समय दारोगा बने यहाँ मौजूद हैं, कुंअर वीरेन्द्रसिंह की मदद जरूर करेंगे, मगर एक आदमी के किए होता ही क्या है? तो भी ज्योतिषीजी ने हिम्मत न हारी और वह राजा से बातचीत करने लगे। ज्योतिषी जी जानते थे कि मेरे अकेले के किए ऐसे मौके पर कुछ नहीं हो सकता, और वहाँ की

च॰ स॰-1