ऐयारों ने क्या तमाशा कर दिया। सैकड़ों वर्षों से जिस तहखाने का हाल एक भेद के तौर पर छिपा चला आता था, बल्कि सच तो यह है कि जहाँ का ठीक हाल अभी तक मुझ भी मालूम न था, उसी तहखाने पर बात-की-बात में आपके ऐयारों ने कब्जा कर लिया, यह करामात नहीं तो क्या है! बेशक ईश्वर की आप पर कृपा है और यह सब सच्च दिल से उपासना का प्रताप है। आपसे दश्मनी रखना अपने हाथ से अपना सिर काटना है।
दिग्विजयसिंह की बात सुन कर राजा वीरेन्द्रसिंह मुस्कुराये और उनकी तरफ देखने लगे। दिग्विजयसिंह ने जिस ढंग से ऊपर लिखी बातें कहीं, उसमें सचाई की बू आती थी। वीरेन्द्रसिंह बहुत खुश हुए और दिग्विजयसिंह को अपने पास बैठा कर बोले-
वीरेन्द्रसिंह-सुनो दिग्विजयसिंह, हम तुम्हें छोड़ देते हैं और रोहतासगढ़ की गद्दी पर अपनी तरफ से तुम्हें बैठाते हैं, मगर इस शर्त पर कि तुम हमेशा अपने को हमारा मातहत समझो और खिराज के तौर पर कुछ मालगुजारी दिया करो।
दिग्विजयसिंह-मैं तो अपने को आपका तबेदार समझ चुका, अब क्या समझूँगा। बाकी रही रोहतासगढ़ की गद्दी, सो मुझे मंजूर नहीं। इसके लिए आप कोई दूसरा नायब मुकर्रर कीजिए और मुझे अपने साथ रहने का हुक्म दीजिये।
बीरेन्द्रसिंह-तुमसे बढ़ कर और कोई नायब रोहतासगढ़ के लिए मुझे दिखाई नहीं देता।
दिग्विजयसिंह-(हाथ जोड़कर) बस, मुझ पर कृपा की जिये। अब राज्य का जंजाल मैं नहीं उठा सकता।
आधे घण्टे तक यही हुज्जत रही। वीरेन्द्रसिंह अपने हाथ से रोहतासगढ़ की गद्दी पर दिग्विजयसिंह को बैठाना चाहते थे और दिग्विजयसिंह इन्कार करते थे, लेकिन आखिर लाचार होकर दिग्विजयसिंह को वीरेन्द्रसिंह का हुक्म मंजूर करना पड़ा, मगर साथ ही इसके उन्होंने वीरेन्द्रसिंह से इस बात का इकरार करा लिया कि महीने भर तक आपको वहाँ मेरा मेहमान बनना पड़ेगा और इतने दिनों तक रोहतासगढ़ में रहना पड़ेगा।
वीरेन्द्रसिंह ने इस बात को खुशी से मंजूर किया, क्योंकि रोहतासगढ़ के तहखाने का हाल उन्हें बहुत-कुछ मालूम करना था। वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह को विश्वास हो गया था कि वह तहखाना जरूर कोई तिलिस्म है।
राजा दिग्विजयसिंह ने हाथ जोड़ कर तेजसिंह की तरफ देखा और कहा, "कृपा कर मुझे समझा दीजिए कि आप और आपके मातहत ऐयार लोगों ने रोहतासगढ़ में क्या किया, अभी तक मेरी अक्ल हैरान है।"
तेजसिंह ने सब हाल खुलासा तौर पर कह सुनाया। दीवान रामानन्द का हाल सुन दिग्विजयसिंह खूब हँसे बल्कि उन्हें अपनी बेवकूफी पर भी हँसी आई और बोले, "आप लोगों से कोई बात दूर नहीं है।" इलके बाद दीवान रामानन्द भी उसी जगह पर बुलाये गये और दिग्विजयसिंह के हवाले किए गये और दिग्विजयसिंह के लड़के कुँअर