पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/६९

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को सुँघा दिया। थोड़ी देर तक खड़ी रहने के बाद माधवी की नब्ज देखी, जब विश्वास हो गया कि वह बेहोश हो गई तब उसके आँचल ले ताली खोल ली और आलमारी में से सुरंग (जिस राह से माधवी आती-जाती थी) की ताली निकाल मोम पर उसका साँचा लिया और फिर उसी तरह ताली अलमारी में रख ताला बन्द कर अलमारी की ताली पुनः माधवी के आँचल में बाँध इन्द्रजीतसिंह के पास आकर बोली, "मैं साँचा ले चुकी, अब जाती हूँ, कल दूसरी ताली बना कर लाऊँगी, तुम माधवी को रात भर इसी तरह बेहोश पड़ी रहने दो। आज वह अपने ठिकाने न जा सको, इसीलिए सवेरे देखना कैसा घबराती है।"

सवेरे को कुछ दिन चढ़े माधवी की आँख खुली, घबरा कर उठ बैठी। उसने अपने दिल का भाव बहुत-कुछ छिपाया मगर उसके चेहरे पर बदहवासी बनी रही जिससे इन्द्रजीतसिंह समझ गए कि रात इसकी आँख न खुली और मामूली जगह पर न जा सकी इसका इसे बहुत रंज है। दूसरे दिन आधी रात बीतने पर इन्द्रजीतसिंह को सोता समझ माधवी अपने पलंग पर से उठी, शमादान बुझा कर आलमारी में से ताली निकाली और कमरे के बाहर हो उसी कोठरी के पास पहुँची, ताला खोल अन्दर गई और भीतर से फिर ताला बन्द कर लिया। इन्द्रजीतसिंह भी छिपे हुए माधवी के साथ ही साथ कमरे के बाहर निकले थे, जब वह कोठरी के अन्दर चली गई तो यह इधर-उधर देखने लगे, उस काली औरत को भी पास ही मौजूद पाया।

माधवी के जाने के आधी घड़ी बाद काली औरत ने उसी नई ताली से कोठरी का दरवाजा खोला जो बमूजिव साँचे के आज वह बना कर लाई थी। इन्द्रजीतसिंह को साथ ले अन्दर जाकर फिर वह ताला बन्द कर दिया। भीतर बिल्कुल अँधेरा था इसलिए काली औरत को अपने बटुए से सामान निकाल मोमबत्ती जलानी पड़ी, जिससे मालूम हुआ कि इस छोटी-सी कोठरी में केवल बीस-पचीस सीढ़ियाँ नीचे उतरने के लिए बनी हैं, अगर बिना रोशनी किए ये दोनों आगे बढ़ते तो बेशक नीचे गिर कर अपने सिर मुँह या पैर से हाथ धोते।

दोनों नीचे उतरे, वहाँ एक बन्द दरवाजा और मिला, वह भी उसी ताली से खुल गया। अब एक बहुत लम्बी सुरंग में दूर तक जाने की नौबत पहुँची। गौर करने से साफ मालूम होता था कि यह सुरंग पहाड़ी के नीचे-नीचे तैयार की गई है, क्योंकि चारों तरफ सिवाय पत्थर के ईंट, चूना या लकड़ी दिखाई नहीं पड़ती थी। यह सुरंग अन्दाज में दो सौ गज लम्बी होगी। इसे तै करने के बाद फिर बन्द दरवाजा मिला। उसे खोलने पर यहाँ भी ऊपर चढ़ने के लिए वैसी ही सीढ़ियाँ मिली जैसी शुरू में पहली कोठरी खोलने पर मिली थीं। काली औरत समझ गई कि अब यह मुरंग खतम हो गई और इम कोठरी का दरवाजा खुलने से हम लोग जरूर किसी मकान या कमरे में पहुँचेंगे इसलिए उसने कोठरी को अच्छी तरह देख-भालकर मोमबत्ती गुल कर दी।

हम ऊपर लिख आये हैं और फिर याद दिलाते हैं कि सुरंग में जितने दरवाजे हैं सभी में इसी किस्म के ताले लगे हैं जिनमें बाहर-भीतर दोनों तरफ से चाबी लगती है, इस हिसाब से ताला लगाने का मूराख इस पार से उस पार तक ठहरा, अगर दरवाजे