कमला के न आने से किशोरी उदास हो रही थी, उसे देखते ही पलंग पर से उठी, आगे बढ़कर कमला को गले से लगा लिया और गद्दी पर अपने पास ला बैठाया, कुशल-मंगल पूछने के बाद बातचीत होने लगी-
किशोरी—कहो बहिन, तुमने इतने दिनों में क्या-क्या काम किया? उनसे मुलाकात भी हुई या नहीं?
कमला-मुलाकात क्यों न होती? आखिर मैं गई थी किस लिए!
किशोरी—कुछ मेरा हालचाल भी पूछते थे?
कमला-तुम्हारे लिए तो जान देने को तैयार हैं, क्या हाल-चाल भी न पूछेगे? बस, दो ही एक दिन में तुमसे मुलाकात हुआ चाहती है।
किशोरी–(खुश होकर) हाँ! तुम्हें मेरी ही कसम, मुझसे झूठ न बोलना!
कमला-क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं तुमसे झूठ बोलूँगी?
किशोरी-नहीं-नहीं, मैं ऐसा नहीं समझती हूँ, लेकिन इस खयाल से कहती हूँ कि कहीं दिल्लगी न सूझी हो।
कमला-ऐसा कभी मत सोचना।
किशोरी-खैर, यह कहो कि माधवी की कैद से उन्हें छुट्टी मिली या नहीं, और अगर मिली तो क्यों कर?
कमला-इन्द्रजीतसिंह को माधवी ने उसी पहाड़ी के बीच वाले मकान में रखा था, जिसमें वह पारसाल मुझे और तुम्हें दोनों की आँखों पर पट्टी बाँध कर ले गई थी।
किशोरी-बड़े बेढब ठिकाने छिपा रखा था।
कमला-मगर वहाँ भी उनके ऐयार लोग पहुँच गये!
किशोरी-भला वे लोग क्यों न पहुँचेंगे, हाँ, तब क्या हुआ?
कमला—(किशोरी की सखियों और लौंडियों की तरफ देखके) तुम लोग जाओ, अपना काम करो।
किशोरी-हाँ, अभी काम नहीं है, फिर बुलावेंगे तो आना।
सखियों और लौंडियों के चले जाने पर कमला ने देर तक बातचीत करने के बाद कहा-
"माधवी का और अग्निदत्त दीवान का हाल भी चालाकी से इन्द्रजीतसिंह ने जान लिया, आजकल उनके कई ऐयार वहाँ पहुँचे हुए हैं। ताज्जुब नहीं कि दस-पाँच दिन में वे लोग उस राज्य को ही गारत कर डालें।"
किशोरी-मगर तुम तो कहती हो कि इन्द्रजीतसिंह वहाँ से छूट गये!
कमला-हाँ, इन्द्रजीतसिंह तो वहाँ से छूट गये, मगर उनके ऐयारों ने अभी तक माधवी का पीछा नहीं छोड़ा, इन्द्रजीतसिंह के छुड़ाने का बन्दोबस्त तो उनके ऐयारों ने ही किया था, मगर आखिर में मेरे ही हाथ से उन्हें छुट्टी मिली। मैं उन्हें चुनार पहुँचा कर तब यहाँ आई हूँ और जो कुछ मेरी जुबानी उन्होंने तुम्हें कहला भेजा है, उसे कहना तथा उनकी बात मानना ही मुनासिब समझती हूँ।