पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१३

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किस तरह उसने अपनी जान बचा ली है। इसका हाल आपको लश्कर में जाने या किसी को चुनारगढ़ भेजने से मालूम होगा।

कुमार––तो क्या वह भी रोहतासगढ़ पहुँच गया?

कमलिनी––पहुँच ही गया तभी तो तारा ने लिखा है।

कुमार––अच्छा, तो ये लाली और कुन्दन कौन हैं?

कमलिनी––आपकी और मेरी दुश्मन, इन दोनों को मामूली दुश्मन न समझिएगा।

कुमार––इसमें किशोरी के आशिक के बारे में लिखा है कि 'उसे किशोरी से बहुत-कुछ उम्मीद भी है'––इसका मतलब क्या है?

कमलिनी––सो ठीक अभी मालूम नहीं हुआ।

कुमार––यह जवाब तुमने बड़े खुटके का दिया।

कमलिनी––(हँसकर) आप चिन्ता न करें। किशोरी तन-मन-धन आपको समर्पण कर चुकी है, वह किसी दूसरे की न होगी।

कुमार––खैर, जब खुलासा हाल मालूम ही नहीं है तो जो कुछ सोचा जाय, मुनासिब है। इसमें लिखा है कि 'किशोरी ने भी पूरा धोखा खाया'––सो क्या?

कमलिनी––इसका भी हाल अभी नहीं मालूम हुआ। शायद आज-कल में कोई दूसरी चिट्ठी आवेगी तो मालूम होगा। बल्कि और भी जो कुछ लिखा है, इशारा ही भर है, असल क्या बात है सो मैं नहीं कह सकती।

कुमार––अच्छा, अब मैं तुम्हारा पूरा हाल जानना चाहता हूँ और इसी के साथ रोहतासगढ़ में रहने वाली लाली और कुन्दन का वृत्तान्त भी तुम्हारी जुबानी सुनना चाहता हूँ।

कमलिनी––मैं सब हाल आपसे कहूँगी और इसके अलावा एक ऐसे भेद की खबर भी आपको दूँगी कि आप खुश हो जायँगे, मगर इसके लिए आपको तीन-चार तक दिन और सब्र करना चाहिए। इसी बीच में तारा भी रोहतासगढ़ से आ जायेगी या मैं खुद उसे बुलवा लूँगी।

कुमार––इन सब बातों को जानने के लिए मैं बहुत बेचैन हो रहा हूँ, कृपा करके जो कुछ तुम्हें कहना हो, अभी कहो।

कमलिनी––नहीं-नहीं, आप जल्दी न करें, मेरा दो-चार दिन के लिए टालना भी आप ही के फायदे के लिए है। आप यह न समझें कि मैं आपको जानबूझ कर यहाँ अटकाना चाहती हूँ। आप यदि मुझ पर भरोसा रक्खें और मुझे अपना दुश्मन न समझें तो यहाँ रहें। मैं लौंडियों की तरह आपकी ताबेदारी करने को तैयार हूँ, और यदि मुझ पर एतबार न हो तो अपने लश्कर चले जायें, चार-पाँच दिन के बाद मैं स्वयं आपसे मिलकर सब हाल कहूँगी।

कुमार––बेशक मैं तुम्हारे बारे में तरह-तरह की बातें सोचता था और तुम पर विश्वास करना मुनासिब नहीं समझता था, मगर अब तुम्हारी तरफ से मुझे किसी तरह का खुटका नहीं है। तुम्हारी बातों का मेरे दिल पर बड़ा ही असर हुआ। इसमें कोई