पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१५४

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का दिल उसकी तरफ खिंच जाना कोई ताज्जुब न था। उसकी पोशाक बेशकीमत और चुस्त मगर कुछ भौंडी थी। स्याह पायजामा, सुर्ख अंगा जिसमें बड़े-बड़े कई जेब किसी चीज से भरे हुए थे, और सब्ज रंग के मुँड़ासे की तरफ ध्यान देने से हँसी आती थी, एक खंजर बगल में और दूसरा हाथ में लिए हुए था।

तेजसिंह ने बड़े गौर से उसे देखा और पूछा, "क्या तुम अपना नाम बता सकते हो?" जिसके जवाब में उसने कहा, "नहीं, मगर चण्डूल के नाम से आप मुझे बुला सकते हैं।"

तेजसिंह––जहाँ तक मैं समझता हूँ, आप इस नाम के योग्य नहीं हैं‌।

चण्डूल––चाहे न हों।

तेजसिंह––खैर, यह भी कह सकते हो कि तुम्हारा आना यहाँ क्यों हुआ?

चण्डूल––इसलिए कि तुम दोनों को होशियार कर दूँ कि कल शाम के वक्त उन आठ आदमियों के खून से इस बाग की क्यारियाँ रँगी जायगीं जो फँस कर यहाँ आ चुके हैं।

तेजसिंह––क्या उनके नाम भी बता सकते हो?

चण्डूल––हाँ, सुनो––राजा वीरेन्द्रसिंह एक, रानी चन्द्रकान्ता दो, इन्द्रजीतसिंह तीन, आनन्दसिंह चार, किशोरी पाँच, कामिनी छह, तेजसिंह सात, नानक आठ।

तेजसिंह––(घबड़ाकर) यह तो मैं जानता हूँ कि दोनों कुमार और उनके ऐयार मायारानी के फंदे में फँसकर यहाँ आ चुके हैं मगर राजा वीरेन्द्रसिंह और चन्द्रकान्ता तो...

चण्डूल––हाँ-हाँ, वे दोनों भी फँस कर यहाँ आ चुके हैं, पूछो नानक से।

नानक––(तेजसिंह की तरफ देखकर) हाँ ठीक है, अपना किस्सा कहने के बाद राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता का हाल मैं आपसे कहने ही वाला था, मगर मुझे वह बात अच्छी तरह मालूम नहीं है कि वे लोग क्यों कर मायारानी के फन्दे में फँसे।

चण्डूल––(नानक से) अब विशेष बातों का मौका नहीं है, तेजसिंह से जो कुछ करते बनेगा कर लेंगे, मैं इस समय तुम्हारे लिए आया हूँ, आओ और मेरे साथ चलो।

नानक––मैं तुम पर विश्वास करके तुम्हारे साथ क्योंकर चल सकता हूँ?

चण्डूल––(कड़ी निगाह से नानक की तरफ देख के और हुकूमत के साथ) लुच्चा कहीं का! अच्छा सुन, एक बात मैं तेरे कान में कहना चाहता हूँ।

इतना कहकर चण्डूल चार-पाँच कदम पीछे हट गया। उसकी डपट और बात ने नानक के दिल पर कुछ ऐसा असर किया कि वह अपने को उसके पास जाने से रोक न सका। नानक चण्डूल के पास गया मगर अपने को हर तरह सम्हाले और अपना दाहिना हाथ खंजर के कब्जे पर रक्खे हुए था। चण्डूल ने झुक कर नानक के कान में कुछ कहा जिसे सुनते ही नानक दो कदम पीछे हट गया और बड़े गौर से उसकी सूरत देखने लगा। थोड़ी देर तक यही अवस्था रही, इसके बाद नानक ने तेजसिंह की तरफ देखा और कहा, "माफ कीजियेगा, लाचार होकर मुझे इनके साथ जाना ही पड़ा, अब