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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१५६

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सकते, क्योंकि आपकी अनमोल ऐयारी यहाँ मिट्टी में मिल गई और अब शीघ्र ही हथकड़ी-बेड़ी भी आपके नजर की जायगी।

तेजसिंह––अगर तुम मेरी ऐयारी चौपट कर चुके थे तो ऐयारी का बटुआ और खंजर भी ले लिए होते! यह गुरुघंटाल का ही काम था कि पागल होने पर भी ऐयारी का बटुआ और खंजर किसी के हाथ में जाने न दिया। बाकी रही बेड़ी सो मेरा चरण कोई छू नहीं सकता जब तक हाथ में खंजर मौजूद है! (हाथ में खंजर लेकर और दिखा कर) वह कौन-सा हाथ है जो हथकड़ी लेकर इसके सामने आने की हिम्मत रखता है।

बिहारीसिंह––मालूम होता है कि इस समय तुम्हारी आँखें केवल मुझी को देख रही हैं उन लोगों को नहीं देखतीं जो मेरे साथ हैं, अतएव सिद्ध हो गया कि तुम पागल होने के साथ-साथ अन्धे भी हो गए, नहीं तो...

बिहारीसिंह की बात पूरी न हुई थी कि बगल की एक कोठरी का दरवाजा खुला और वही चण्डूल फुर्ती के साथ निकल कर सभी के बीच में आ खड़ा हुआ जिसे देखते ही मायारानी और उसके साथियों की हैरानी का कोई ठिकाना न रहा। केवल इतना ही नहीं, बल्कि यह भी मालूम हुआ कि उस कोठरी में और भी कई आदमी हैं जिसके अन्दर से चण्डूल निकला था क्योंकि उस कोठरी का दरवाजा चण्डूल ने खुला ही छोड़ दिया था और उसके अन्दर के आदमी कुछ-कुछ दिखाई पड़ रहे थे।

चण्डूल––(मायारानी और उसके साथियों की तरफ देख कर) यह कहने की कोई जरूरत नहीं कि मैं कौन हूँ, हाँ अपने यहाँ आने का सबब जरूर कहूँगा। मुझे एक लौंडी और एक गुलाम की जरूरत है, कहो, तुम लोगों में से किसे चुन (मायारानी की तरफ इशारा करके) मैं समझता हूँ कि इसी को अपनी लौंडी बनाऊँ, और (बिहारीसिंह की तरफ इशारा करके) इसे गुलाम की पदवी दूं।

बिहारीसिंह––तू कौन है जो इस बेअदबी के साथ बातें कर रहा है? (मायारानी की तरफ इशारा करके) तू जानता नहीं कि ये कौन हैं?

चण्डुल––(हँस कर) मेरी शान में चाहे कोई कैसी ही कड़ी बात कहे मगर मुझे क्रोध नहीं आता क्योंकि मैं जानता हूँ कि सिवा ईश्वर के कोई दूसरा मुझसे बड़ा नहीं है, और मेरे सामने खड़ा होकर जो बातें कर रहा है वह तो गुलाम के बराबर भी हैसियत नहीं रखता! मैं क्या जानूं कि (मायारानी की तरफ इशारा करके) यह कौन है? हाँ, यदि मेरा हाल जानना चाहते हो तो मेरे पास आओ और कान में सुनो कि क्या कहता हूँ।

बिहारीसिंह––हम ऐसे बेवकूफ नहीं हैं कि तुम्हारे चकमे में आ जायें।

चण्डूल––क्या तू समझता है कि मैं उस समय तुझ पर वार करूँगा जब तू कान झुकाए हुए मेरे पास आकर खड़ा होगा?

बिहारीसिंह––वेशक ऐसा ही है।

चण्डूल––नहीं-नहीं, यह काम हमारे ऐसे बहादुरों का नहीं है। अगर डरता है तो किनारे चल, मैं दूर ही से जो कुछ कहना है कह हूँ जिसमें कोई दूसरा न सुने!

बिहारीसिंह––(कुछ सोच कर) ओफ, मैं तुझ ऐसे कमजोर से डरने वाला नहीं, कह, क्या कहता है।