पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१५९

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के वैसे ही ताबेदार और खैरखाह बने रहे जैसे थे। मगर, चण्डूल की कही हुई बात वे दोनों अपने मुँह से कभी भी निकाल नहीं सकते थे। जब-जब चण्डूल का ध्यान आता बदन के रोंगटे खड़े हो जाते थे और ठीक यही अवस्था मायारानी की भी थी। माया- रानी को यह भी निश्चय हो गया कि चण्डूल नकली बिहारीसिंह अर्थात् तेजसिंह को छुड़ा ले गया।


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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कँपकँपी भी पैदा नहीं कर सकती। हम इस समय आपको एक ऐसे मैदान की तरफ ध्यान देने के लिए कहते हैं, जिसकी लम्बाई और चौड़ाई का अन्दाज करना कठिन है। जिधर निगाह दौड़ाइये, सन्नाटा नजर आता है। कोई पेड़ भी ऐसा नहीं है, जिसके पीछे या जिस पर चढ़ कर कोई आदमी अपने को छिपा सके। हाँ, पूरब तरफ निगाह कुछ ठोकर खाती है और एक धुँधली चीज को देख कर गौर करने वाला कह सकता है कि उस तरफ शायद कोई छोटी-सी पहाड़ी या पुराने जमाने का कोई ऊँचा टीला है।

ऐसे मैदान में तीन औरतें घोड़ियों पर सवार धीरे-धीरे उसी तरफ जा रही हैं, जिधर उस टीले या छोटी पहाड़ी की स्याही मालूम हो रही है। यद्यपि उन औरतों की पोशाक जनाना वजः की है। मगर, फिर भी चुस्त और दक्षिणी ढंग की है। तीनों के चेहरे पर नकाब पड़ी हुई है, तथापि वदन की सुडौली और कलाई तथा नाजुक उँगलियों पर ध्यान देने से देखने वाले के दिल में यह बात जरूर पैदा होगी कि ये तीनों ही नाजुक नौजवान और खूबसुरत हैं। इन औरतों के विषय में हम अपने पाठकों को ज्यादा देर तक खटके में न डाल कर इसी समय इनका परिचय दे देना उत्तम समझते हैं। वह देखिये ऊँची और मुश्की घोड़ी पर जो सवार है, वह मायारानी है। चोगर आँखों वाली सफेद पचकल्यान घोड़ी पर जो पटरी जमाये है, वह उसकी छोटी बहिन लाड़िली है, जिसे अभी तक हम रामभोली के नाम से लिखते चले आये हैं, और सब्जी घोड़ी पर सवार चारों तरफ निगाह दौड़ा-दौड़ा कर देखने वाली धनपत है। ये तीनों आपस में धीरे-धीरे बातें करती जा रही हैं। लीजिए तीनों ने अपने चेहरों पर से नकाबें उलट दीं, अब हमें तीनों की बातों पर ध्यान देना उचित है।

मायारानी––न मालूम चण्डूल कम्बख्त तीसरे नम्बर के बाग में क्योंकर जा पहुँचा! इसमें तो कुछ सन्देह नहीं कि जिस राह से हम लोग आते-जाते हैं उस राह से वह नहीं गया था।

लाड़िली––तिलिस्म बनाने वालों ने वहाँ पहुँचने के लिए कई रास्ते बनाए हैं,