पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१६१

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मगर मायारानी और धनपत की ऐसी अवस्था ज्यादा देर तक न रही, उन दोनों ने बहुत जल्द अपने का सम्हाला और फिर मामूली तौर पर बातचीत करने लगीं।

धनपति––अब वह टीला भी आ पहुँचा। देखा चाहिए बाबाजी से मुलाकात होती है या नहीं!

मायारानी––मुलाकात अवश्य होगी क्योंकि वे कहीं नहीं जाते मगर अब मेरा जी नहीं चाहता कि वहाँ तक जाऊँ या उनसे मिलूँ।

लाड़िली––सो क्यों! तुम तो बड़े उत्साह से उनसे मिलने के लिए आई हो!

माया––ठीक है, मगर अब जो मैं सोचती हूँ तो यही जान पड़ता है कि बेचारे बाबाजी इन सब बातों का जवाब कुछ भी न दे सकेंगे।

लाड़िली––खैर, जब इतनी दूर आ चुकी हो तो अब लौट चलना भी उचित नहीं।

माया––नहीं, अब मैं वहाँ न जाऊँगी!

इतना कहकर मायारानी ने घोड़ा फेरा, लाचार होकर लाड़िली और धनपत को भी घूमना पड़ा, मगर इस कार्रवाई से लाड़िली के दिल का शक और भी ज्यादा हुआ और उसे निश्चय हो गया कि मेरी बात से मायारानी के दिल पर गहरी चोट बैठी है मगर ठीक इसका सबब क्या है सो कुछ भी नहीं मालूम होता।

मायारानी ने जैसे ही घोड़े की बाग फेरी, वैसे ही उसकी निगाह तेजसिंह पर पड़ी जो तीर और कमान हाथ में लिए बहुत दूर से कदम बढ़ाए इन तीनों के पीछे-पीछे आ रहे थे। मायारानी तेजसिंह को अच्छी तरह से जानती थी। यद्यपि इस समय कुछ अँधेरा हो गया था परन्तु मायारानी की तेज निगाहों ने तेजसिंह को तुरन्त ही पहचान लिया और इसके साथ ही वह तलवार खींच कर तेजसिंह पर झपटी।

मायारानी को नंगी तलवार लिए झपटते देख तेजसिंह ने ललकार के कहा, "खबरदार, आगे न बढ़ना, नहीं तो एक ही तीर में काम तमाम कर दूँगा!"

तेजसिंह के ललकारने से मायारानी रुक गई मगर धनपत से न रहा गया। वह तलवार खींच कर यह कहती हुई आगे बढ़ी, "मैं तेरे तीर से डरने वाली नहीं!"

तेजसिंह––मालूम होता है तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है, इसे खूब समझ लेना कि तेजसिंह के हाथ से छूटा तीर खाली न जायगा।

धनपत––मालूम होता है कि तू केवल एक तीर ही से हम तीनों को डरा कर अपना काम निकालना चाहता है। अफसोस, इस समय मेरे पास तीर-कमान नहीं है, यदि होता तो तुझे जान पड़ता कि तीर चलाना किसे कहते हैं?

तेजसिंह––(हँसकर) न मालूम तूने औरत होने पर भी अपने को क्या समझ रक्खा है? खैर, अब मैं एक कमसिन औरत पर तीर न चलाऊँगा।

इतना कहकर तेजसिंह ने तीर तरकस में रख लिया तथा कमान बगल में लटकाने के बाद ऐयारी के बटुए में से एक छोटा-सा लोहे का गोला निकालकर सामने खड़े हो गये और धनपति को वह गोला दिखाकर बोले, "तुम लोगों के लिए यही बहुत है, मगर मैं फिर कहे देता हूँ कि मुझ पर तलवार चलाकर भलाई की आशा मत रखना!"