पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२०१

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बोली, "क्या यह कोई कुआँ है?"

मायारानी––हाँ, यह कुआँ है और ऐसे नमकहरामों को सजा देने के लिए बनाया गया है! दोनों बेईमान ऐयार मेरा साथ छोड़ के अपनी जान बचाना चाहते थे। हरामजादे पाजी नालायक, अब अपनी सजा को पहुँचे।

नपत––इतने दिनों तक आपके साथ रहने पर भी इस कुएँ का हाल मुझे मालूम न था।

मायारानी––यहाँ के बहुत से भेद अभी तुम्हें मालूम नहीं हैं, खैर, अब यहाँ से चलना चाहिए।

धनपत को साथ लिए मायारानी उस कोठरी के बाहर निकली और दरवाजा बन्द करने के बाद कमन्द के सहारे उतरकर अपने खास सोने वाले कमरे में चली आई। मायारानी की लौंडियों ने मायारानी को दोनों ऐयारों और धनपत के साथ उस कोठरी की तरफ जाते देखा था मगर अब केवल धनपत को साथ लिए लौटते देख उनको ताज्जुब हुआ लेकिन डर के मारे कुछ पूछ न सकी।

संध्या का समय हो गया। मायारानी अपने कमरे में जाकर मसहरी पर लेट गई। उस समय बहुत-सी लौंडियाँ उसके सामने थीं मगर इशारा पाकर सब बाहर चली गईं केवल धनपत वहाँ रह गई।

धनपत––आपने बहुत जल्दी की, बेचारे ऐयारों की जान व्यर्थ ही गई।

मायारानी––वे दोनों कमीने इसी लायक थे। इसीलिए मैं उनसे बार-बार पूछ रही थी, जब देख लिया कि वे अपने विचार पर दृढ़ हैं तो लाचार...

धनपत––खैर, जो कुछ हुआ सो अच्छा हुआ लेकिन अब क्या करना चाहिए? अफसोस यह है कि ऐसे समय में बेचारी मनोरमा भी नहीं है।

मायारानी––(लम्बी साँस लेकर) हाय, बेचारी मनोरमा मेरी सच्ची सहायक थी पर उसे भी तेजसिंह ने गिरफ्तार कर लिया। इसी खबर के साथ नागर ने कहला भेजा था कि भूतनाथ के कागजात अपने साथ लेकर उसे छुड़ाने जाती हूँ, मगर उस बात को भी बहुत दिन बीत गए और अभी तक मालूम न हुआ कि नागर के जाने का क्या नतीजा निकला। तेजसिंह ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया हो तो ताज्जुब नहीं, सच तो यह है कि भूतनाथ के मारने में मनोरमा ने बड़ी जल्दी की।

धनपत––बेशक भूतनाथ के मारने में उसने बड़ी भूल की, भूतनाथ से बहुतकुछ काम निकलने की आशा थी!

इतने ही में बाहर से आवाज आई, "थी नहीं बल्कि है!" मायारामी ने दरवाजे की तरफ देखा तो नागर पर निगाह पड़ी।

मायारानी––आह, इस समय तेरा आना बहुत ही अच्छा हुआ, आ, मेरे पास आकर बैठ।

नागर––(मायारानी के पास बैठकर) मैं देखती हूँ कि आज आपकी अवस्था बिल्कुल बदली हुई है। कहिये मिजाज तो अच्छा है?

मायारानी––अच्छा क्या है बस दम निकलने की देर है।