गोपालसिंह––ठीक है, तब तो तू मुझसे भी ज्यादा अब वहाँ का हाल जान गई होगी।
इन्द्रजीतसिंह––(चौंक कर और कमलिनी की तरफ देख कर) क्या 'रिक्तगन्थ' तुम्हारे पास है?
कमलिनी––(हँस कर) जी हाँ, मगर इससे यह न समझ लीजिएगा कि मैंने आपके यहाँ चोरी की थी?
तेजसिंह––नहीं, नहीं, मैं खूब जानता हूँ, 'रिक्तगन्थ' का चोर कोई दूसरा ही है, आपको नानक की बदौलत वह किताब हाथ लगी।
कमलिनी––जी हाँ, जिस समय तिलिस्मी बाग में नानक अपना किस्सा आपसे कह रहा था, मैं छिप कर सुन रही थी।
इन्द्रजीतसिंह––नानक का किस्सा कैसा है?
तेजसिंह––मैं आपसे कहता हूँ, जरा सब कीजिए।
इस समय उस किश्ती पर ये जितने आदमी थे, उनमें केवल इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को किशोरी और कामिनी का ध्यान था। तेजसिंह ने अपने पागल बनने का हाल और उसी बीच में नानक का किस्सा जितना उसकी जुबानी सुना था कह सुनाया। तेजसिंह के पागल बनने का हाल सुन कर सभी को हँसी आ गई। दोनों कुमारों ने नानक का वाकी हाल कमलिनी से पूछा, जिसके जवाब में कमलिनी ने कहा––"यद्यपि नानक का कुछ हाल मुझे मालूम है। मगर मैं इस समय कुछ भी न कहूँगी, क्योंकि उसका किस्सा सुने बिना इस समय कोई हर्ज भी नहीं। हाँ, इस समय थोड़ा-सा अपना हाल मैं आपसे कहूँगी।
कमलिनी ने भूतनाथ का, मनोरमा और नागर का तथा अपना हाल जितना हम ऊपर लिख आये हैं, सभी के सामने कहना शुरू किया। अपना हाल कहते-कहते जब कमलिनी ने मनोरमा के मकान का अद्भुत हाल कहना शुरू किया तो सभी को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और किशोरी की अवस्था पर इन्द्रजीतसिंह को रुलाई आ गई। उनके दिल पर बड़ा ही सदमा गुजरा, मगर तेजसिंह के लिहाज से जिन्हें वे चाचा के बराबर समझते थे, अपने को सम्हाला। गोपालसिंह ने बहुत दिलासा देकर कहा, "आप लोग घबराइये नहीं, कम्बख्त मनोरमा के मकान का पूरा-पूरा भेद मैं जानता हूँ, इसलिए मैं बहुत जल्द किशोरी को उसकी कैद से छुड़ा लूँगा।"
लाड़िली––कामिनी भी उसी के मकान में भेज दी गई है।
गोपालसिंह––यह और अच्छी बात है, 'एक पंथ दो काज' हो जायगा?
इन्द्रजीतसिंह––(कमलिनी से) अब यह 'रिक्तग्रन्थ' मुझे कब मिलेगा?
कमलिनी––वह मेरे पास है, उसी की बदौलत मैं आपको उस कैदखाने से छुड़ा सकी और उसी की बदौलत आपको तिलिस्म तोड़ने में सुगमता होगी, मैं बहुत जल्द वह किताब आपके हवाले करूँगी।
गोपालसिंह––(चारों तरफ देख के कमलिनी से) ओफ, बात ही में बात हम लोग बहुत दूर निकल आए! क्या तुम्हारा इरादा काशी चलने का है?