पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२१०

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कुमार––बेशक आपकी राय उत्तम है।

कमलिनी––अच्छा तो अपना तिलिस्मी खंजर जिसका गुण आपसे कह चुकी हूँ, आपको देती हूँ, यह आपकी बहुत सहायता करेगा।

गोपालसिंह––हाँ बेशक, यह खंजर ऐसी अवस्था में मेरे साथ रहने योग्य है, परन्तु वह जब तक तुम्हारे पास है, मैं तुम्हें किसी तरह का खतरा नहीं पहुँचा सकता, इसलिए खंजर को मैं तुमसे जुदा न करूँगा।

इन्द्रजीतसिंह––उस खंजर का जोड़ा, जो कमलिनी ने मुझे दिया है मैं आपको देता हूँ, आप इसे अवश्य अपने साथ रखें।

गोपालसिंह––नहीं-नहीं, इसकी कोई आवश्यकता नहीं।

इन्द्रजीतसिंह––आपको मेरी यह बात अवश्य माननी पड़ेगी।

इतना कहकर इन्द्रजीतसिंह ने वह खंजर जबर्दस्ती गोपाल सिंह के हवाले किया और किश्ती किनारे लगाने का हुक्म दिया।

गोपालसिंह––अच्छा तो मेरे साथ कौन ऐयार चलेगा?

इन्द्रजीतसिंह––जिसे आप पसन्द करें! केवल तेजसिंह चाचा को मैं अपने पास रखना चाहता हूँ, इसलिए कि इनकी जुबानी उन घटनाओं का हाल सुनूँगा जो आपको कैद से छुड़ाने के समय हुई होंगी।

गोपालसिंह––(हँसकर) बेशक वे बातें सुनने योग्य हैं!

देवीसिंह––आपके साथ मैं चलूँगा।

गोपालसिंह––अच्छी बात है।

इन्द्रजीतसिंह––भैरोंसिंह को रोहतासगढ़ भेजता हूँ!

गोपालसिंह––बहुत मुनासिब, मगर तेजसिंह के अतिरिक्त और दोनों ऐयारों को अर्थात् तारासिंह और शेरसिंह को अपने साथ मत फँसाये रहियेगा।

इन्द्रजीतसिंह––नहीं-नहीं, उन दोनों को अपने रहने का ठिकाना दिखाकर छोड़ देंगे, ये दोनों चारों तरफ घूमकर खबर लगाते रहेंगे। गोपालसिंह और मैं भी यही चाहता हूँ। (कमलिनी की तरफ देखकर) बाग के चौथे दर्जे में जो देवमन्दिर है, वहाँ जाने का रास्ता तुझे अच्छी तरह मालूम है या नहीं?

कमलिनी––'रिक्तग्रन्थ' की बदौलत वहाँ का रास्ता मैं अच्छी तरह जानती हूँ। इतने में किश्ती किनारे लगी और सब कोई उतर पड़े।


7

राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोंसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के