पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/४०

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उम्मीद पाई जाती थी कि दो-ही-तीन दिन में हजार आदमी पहाड़ के ऊपर हो जायेंगे। तब नाहरसिंह छिपकर अकेला पहाड़ पर चढ़ जायगा और अपने आदमियों को बटोर कर किले के दरवाजे पर हमला करेगा। पहाड़ के ऊपर पहुँचकर सुरंग खोदनेवाले सुरंग खोद कर बारूद के जोर से किले का फाटक तोड़ने की धुन में लगे हुए थे और इन बातों की खबर राजा दिग्विजयसिंह को बिल्कुल न थी।

भैरोंसिंह ने फौज में पहुँचकर यह सब हाल सुना और खुश होकर सेनापतियों की तारीफ की तथा कहा कि "यद्यपि पहाड़ के ऊपर का घना जंगल ऐसा बेढब है कि मुसाफिरों को जल्दी रास्ता नहीं मिल सकता, तथापि हमारे आदमी यदि ऊँचाई की तरफ ध्यान न देकर चढ़ना शुरू करेंगे तो लुढ़कते-पुढ़कते किले के पास पहुँच ही जायेंगे। खैर, आप लोग जिस काम में लगे हैं, उसी में लगे रहिए। हम तीनों ऐयार अब पहाड़ पर जाते हैं और किसी तरह किले के अन्दर पहुँचने का बन्दोबस्त करते हैं।

पहर रात बीत गई थी जब भैरोंसिंह, रामनारायण और चुन्नीलाल पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगे। भैरोंसिंह कई दफे उस पहाड़ी पर जा चुके थे और उस जंगल में अच्छी तरह घूम चुके थे, इसलिए इन्हें भूलने और धोखा खाने का डर न था। ये लोग बेधड़क पहाड़ पर चले गए और रोहतासगढ़ के रास्ते वाले कब्रिस्तान में ठीक उस समय पहुँचे, जिस समय कमला धड़कते हुए कलेजे के साथ उस राक्षसी के सामने खड़ी थी जिसके हाथ मे बिजली की तरह चमकता हुआ नेजा था। जिस समय वह नेजा चमकता था, देखने वाले की आँखें चौंधिया जाती थीं। भैरोंसिंह ने भी दूर से इस चमकते हुए नेजे को देखा जिसे देखकर दोनों साथी ऐयार भी डर कर खड़े हो गए। भैरोंसिंह चाहते थे कि जब वह औरत वहाँ से चली जाय, तो कब्रिस्तान में जायँ, मगर वे ऐसा न कर सके, क्योंकि नेजे की चमक में उन्होंने कमला की सूरत देखी जो इस समय जान से हाथ धोकर उस राक्षसी के सामने खड़ी थी।

हम ऊपर कई जगह इशारा कर आए हैं कि भैरोंसिंह कमला को चाहते थे और वह भी इनसे मुहब्बत रखती थी। इस समय कमला को एक राक्षसी के सामने देख उसकी मदद न करना भैरोंसिंह से कब हो सकता था? वे लपक कर कमला के पास पहुँचे। दो ऐयारों को साथ लिये भैरोंसिंह को अपने पास मौजूद देख कर कमला का जी ठिकाने हुआ और उसने जल्दी से भैरोंसिंह का हाथ पकड़ के कहा––"खूब पहुँचे!"

भैरोंसिंह––तुम यहाँ क्यों खड़ी हो और तुम्हारे सामने यह औरत कौन है?

कमला––मैं इसे नहीं पहचानती।

राक्षसी––मेरा हाल कमला से क्यों पूछते हो? मुझसे पूछो। इस समय तुम्हें देखकर मैं बहुत खुश हुई, मैं भी इसी फिक्र में थी कि किसी तरह भैरोंसिंह से मुलाकात हो।

भैरोंसिंह––तुमने मुझे कैसे पहचाना? क्योंकि आज तक मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा!

इतना सुनकर वह औरत बड़ी जोर से हँसी और उसने नेजे को हिलाया। हिलाने के साथ ही नेजे में चमक पैदा हुई और उसकी डरावनी हँसी से कब्रिस्तान गूँज