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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/४२

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समय शेरसिंह ने कमला से कहा था कि "कामिनी को मैं ले जाता हूँ। अपने एक दोस्त के यहाँ रख दूँगा, जब सब तरह का फसाद मिट जायगा तब यह भी अपनी मुराद को पहुँच जायगी।" अब हम उसी जगह से कामिनी का हाल लिखना शुरू करते हैं।

गयाजी से थोड़ी दूर पर लालगंज नाम से मशहूर एक गाँव फलगू नदी के किनारे पर ही है। उसी जगह के एक नामी जमींदार के यहाँ, जो शेरसिंह का दोस्त था, कामिनी रक्खी गई थी। वह जमींदार बहुत ही नेक और रहमदिल था तथा उसने कामिनी को बड़ी हिफाजत से अपनी लड़को के समान खातिर करके रक्खा, मगर उस जमींदार का एक नौजवान और खूबसूरत लड़का भी था जो कामिनी पर आशिक हो गया। उसके हाव-भाव और कटाक्ष को देखकर कामिनी को उसकी नीयत का हाल मालूम हो गया। वह कुँअर आनन्दसिंह के प्रेम में अच्छी तरह रँगी हुई थी इसलिए उसे इस लड़के की चाल-ढाल बहुत ही बुरी मालूम हुई। ऐसी अवस्था में उसने अपने दिल का हाल किसी से कहना मुनासिब न समझा बल्कि इरादा कर लिया कि जहाँ तक हो सके, जल्द इस मकान को छोड़ ही देना मुनासिब है और अन्त में लाचार होकर उसने ऐसा ही किया।

एक दिन मौका पाकर आधी रात के समय कामिनी उस घर से बाहर निकली और सीधे रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुई। इस समय वह तरह-तरह की बातें सोच रही थी। एक दफे उसके दिल में आया कि बिना कुछ सोचे-विचारे वीरेन्द्रसिंह के लश्कर में चले चलना ठीक होगा, मगर साथ ही यह भी सोचा कि यदि कोई सुनेगा तो मुझे अवश्य ही निर्लज्ज कहेगा और आनन्दसिंह की आँखों में मेरी कुछ इज्जत न रहेगी।

इसके बाद उसने सोचा कि जिस तरह हो, कमला से मुलाकात करनी चाहिए। मगर कमला से मुलाकात क्योंकर हो सकती है? न मालूम अपने काम की धुन में वह कहाँ-कहाँ घूम रही होगी? हाँ, अब याद आया, जब मैं कमला के साथ शेरसिंह से मिलने के लिए उस तहखाने में गई थी, तो शेरसिंह ने उससे कहा था कि मुझसे मिलने की जब जरूरत हो तो इसी तहखाने में आना। अब मुझे भी उसी तहखाने में चलना चाहिए, वहाँ कमला या शेरसिंह से जरूर मुलाकात होगी और वहाँ दुश्मनों के हाथ से भी निश्चिन्त रहूँगी। जब तक कमला से मुलाकात न हो वहाँ टिके रहने में भी कोई हर्ज नहीं है, वहाँ खाने के लिए जंगली फल और पीने के लिए पानी की भी कोई कमी नहीं।

इन सब बातों को सोचती हुई बेचारी कामिनी उसी तहखाने की तरफ रवाना हुई और अपने को छिपाती हुई, जंगल-ही-जंगल चल कर, तीसरे दिन पहर रात जाते-जाते वहाँ पहुँची। रास्ते में जंगली फल और चश्मे के पानी के सिवाय और कुछ उसे मिला और न उसे किसी चीज की इच्छा ही थी।

वह खँडहर कैसा था और उसके अन्दर तहखाने में जाने के लिए छिपा हुआ रास्ता किस ढंग का बना हुआ था, यह पहले लिखा जा चुका है, पुनः यहाँ लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है। कमला या शेरसिंह से मिलने की उम्मीद में उसी खँडहर और तहखाने को कामिनी ने अपना घर बनाया और तपस्विनियों की तरह कुँअर