सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
55
 

रोकना मुनासिब न समझा।

वीरेन्द्रसिंह––हाँ ठीक है, ऐसा ही हुआ है। यह हाल मुझे मालूम था, मगर शक मिटाने के लिए तुमसे पूछा था।

कमला––(ताज्जुब में आकर) आपको कैसे मालूम हुआ?

वीरेन्द्रसिंह––मुझसे देवीसिंह ने कहा था और देवीसिंह को उस साधु ने कहा था जो रामशिला पहाड़ी के सामने फलगू नदी के बीच वाले भयानक टीले पर रहता था। देवीसिंह की जुबानी बाबाजी ने मुझे एक सन्देशा भी कहला भेजा था, मौका मिलने पर मैं जरूर उनके हुक्म की तामील करूँगा।

कमला––वह सन्देशा क्या था?

वीरेन्द्रसिंह––सो इस समय न कहूँगा। हाँ, यह तो बता कि कामिनी का और उन डाकुओं का साथ क्योंकर हुआ जो गयाजी की रिआया को दुःख देते थे?

कमला––कामिनी का उन डाकुओं से मिलना केवल उन लोगों को धोखा देने के लिए था। वे डाकू सब अग्निदत्त की तरफ से तनख्वाह और लूट के माल में कुछ हिस्सा भी पाते थे। वे लोग कामिनी को पहचानते थे और उसकी इज्जत करते थे। उस समय उन लोगों को यह नहीं मालूम था कि कामिनी अपने बाप से रंज होकर घर से निकली है उससे डरते थे और जो वह कहती थी करते थे। आखिर कामिनी ने धोखा देकर उन लोगों को मरवा डाला और मेरे ही हाथ से उन डाकुओं की जानें गईं। वे डाकू लोग जहाँ रहते थे, आपको मालूम हुआ ही होगा।

वीरेन्द्रसिंह––हाँ, मालूम हुआ है। जो कुछ मेरा शक था, मिट गया, अब उस विषय में विशेष कुछ मालूम करने की कोई जरूरत नहीं है। अब मैं यह पूछता हूँ कि इस रोहतासगढ़ वाले आदमी जब किशोरी को ले भागे, तब तेरा और कामिनी का क्या हाल हुआ?

कमला––कामिनी को साथ लेकर मैं उस खँडहर से, जिसमें नाहरसिंह और कुँअर इन्द्रजीतसिंह की लड़ाई हुई थी, बाहर निकली और किशोरी को छुड़ाने की धुन में रवाना हुई, मगर कुछ कर न सकी, बल्कि यों कहना चाहिए कि अभी तक मारी फिरती हूँ। यद्यपि इस रोहतासगढ़ के महल तक पहुँच चुकी थी, मगर मेरे हाथ से कोई काम न निकला।

वीरेन्द्रसिंह––खैर, कोई हर्ज नहीं। अच्छा, यह बता कि अब कामिनी कहाँ है!

कमला––कामिनी को मेरे चाचा शेरसिंह ने अपने एक दोस्त के घर में रक्खा है मगर मुझे यह नहीं मालूम कि वह कौन है ओर कहाँ रहता है।

वीरेन्द्रसिंह––शेरसिंह से कामिनी क्योंकर मिली?

कमला––यहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक खँडहर है। शेरसिंह से मिलने के लिए कामिनी को साथ लेकर मैं उसी खँडहर में गई थी। मगर अब सुनने में आया है कि शेर सिंह ने आपकी ताबेदारी कबूल कर ली और आपने उन्हें कहीं भेजा है।

वीरेन्द्रसिंह––हाँ, वह देवीसिंह को साथ लेकर इन्द्रजीत को छुड़ाने के लिए गये हैं मगर न मालूम, क्या हुआ कि अभी तक नहीं लौटे।