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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/६४

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भैरोंसिंह––क्या तुझे अपने मालिक का डर है?

आदमी––जी हाँ।

भैरोंसिंह––मैं वादा करता हूँ कि तेरी जान बचाऊँगा, और तुझे बहुत-कुछ इनाम भी दिलाऊँगा।

आदमी––इस वादे से मेरी तबीयत नहीं भरती। क्योंकि मुझे तो आप लोगों के ही बचने की उम्मीद नहीं। हाय, क्या आफत में जान फँसी है अगर कुछ कहें तो मालिक के हाथ से मारे जायें और न कहें तो इन लोगों के हाथ से दुःख भोगें!

भैरोंसिंह––तेरी बातों से मालूम होता है कि तेरा मालिक बहुत जल्द ही यहाँ आना चाहता है?

आदमी––बेशक ऐसा ही है।

यह सुनते ही भैरोंसिंह ने तारासिंह के कान में कुछ कहा और उनका ऐयारी का बटुआ लेकर अपना बटुआ उन्हें दे दिया जिसे ले वे तुरन्त वहाँ से रवाना हुए और तहखाने के बाहर निकल गए। तारासिंह ने जल्दी-जल्दी खँडहर के बाहर होकर उस कुएँ में से एक लुटिया पानी खींचा और बटुए में से कोई चीज निकाल कर पत्थर पर रगड़ जल में घोलकर पी ली। फिर एक लुटिया जल निकाल कर वही चीज पत्थर पर घिस पानी में मिलाई और बहुत जल्द तहखाने में पहुँचे। जल की लुटिया भैरोंसिंह के हाथ में दी, भैरोंसिंह ने बटुए से कुछ खाने की चीज निकाली और कामिनी से कहा, "इसे खाकर तुम यह जल पी लो।"

कामिनी––भला खाने और जल पीने का यह कौन-सा मौका है? यद्यपि मैं कई दिनों से भूखी हूँ, परन्तु क्या कुमार की लाश के सिरहाने बैठकर मैं खा सकूँगी, क्या यह अन्न मेरे गले के नीचे उतरेगा?

भैरोंसिंह––हाय! इस बात का मैं कुछ भी जवाब नहीं दे सकता। खैर, इस पानी में से थोड़ा तुम्हें पीना ही पड़ेगा। अगर इससे इन्कार करोगी तो हम सब लोग मारे जायँगे। (धीरे से कुछ कहकर) बस, देर न करो।

कामिनी––अगर ऐसा है तो मैं इन्कार नहीं कर सकती।

भैरोंसिंह ने उस लुटिया में से आधा जल कामिनी को पिलाया और आधा आप पीकर लुटिया तारासिंह के हवाले की। तारासिंह तुरन्त तहखाने में से बाहर निकल आए और जहाँ तक जल्द हो सका, इधर-उधर से सूखी हुई लकड़ियाँ और कण्डे बटोर कर खँडहर के बीच में एक जगह रक्खा, तब बटुए में से चकमक पत्थर निकाला और उसमें से आग झाड़ कर गोठों और लकड़ियों को सुलगाया।

तारासिंह यह सब काम बड़ी फुर्ती से कर रहे थे और घड़ी-घड़ी में खँडहर के बाहर मैदान की तरफ देखते भी जाते थे। आग सुलगाने के बाद जब तारासिंह ने मैदान की तरफ देखा तो बहुत दूर पर गर्द उड़ती हुई दिखाई दी। वह अपने काम में फिर जल्दी करने लगे। बटुए में से एक शीशी निकाली जिसमें किसी प्रकार का तेल था, वह तेल आग में डाल दिया, आग पर दो-तीन दफे पानी का छींटा दिया, फिर मैदान की तरफ देखा। मालूम हुआ कि दस-पन्द्रह आदमी घोड़ों पर सवार बड़ी तेजी से इसी तरफ आ