तारासिंह की इस बात ने सभी को तरद्दुद में डाल दिया और थोड़ी देर तक वे लोग सोच-विचार में पड़े रहे इसके बाद कमला ने कहा, "पहले खँडहर में चलकर तहखाने का दरवाजा खोलना चाहिए, देखें खुलता है या नहीं, अगर खुल गया तो सोच-विचार की कुछ जरूरत नहीं, यदि न खुल सका तो देखा जायगा।"
इस बात को सभी ने पसन्द किया और राजा वीरेन्द्रसिंह ने कमला को आगे चलने और तहखाने का दरवाजा खोलने के लिए कहा। खँडहर में इस समय धुआँ कुछ भी न था, सब साफ हो चुका था। कमला सभी को साथ लिए हुए उस दालान में पहुँची जहाँ से तहखाने में जाने का रास्ता था। मोमबत्ती जला कर हाथ में ली और बगल वाली कोठरी में जाकर मोमबत्ती तारासिंह के हाथ में दे दी। इस कोठरी में एक आलमारी थी जिसके पल्लों में दो मुढें लगे हुए थे। इन्हीं मुट्ठों के घुमाने से दरवाजा खुल जाता था और फिर एक कोठरी में पहुँच जाने से तहखाने में उतरने के लिए सीढ़ियाँ मिलती थीं। इस समय कमला ने इन्हीं दोनों मुट्ठों को कई वार घुमाया, वे घूम तो गए मगर दरवाजा न खुला। इसके बाद तारासिंह ने और फिर तेजसिंह ने भी उद्योग किया मगर कोई काम न चला। तब तो सभी का जी बेचैन हो गया और विश्वास हो गया कि उस बेईमान साधु ने जो कुछ कहा, सो किया। इस खंडहर में कोई शाहदरवाजा जरूर है जिसे साधु ने बन्द कर दिया और जिसके सबब से यह दरवाजा अब नहीं खुलता।
सब लोग उस कोठरी से बाहर निकले और उस साधु को ढूँढ़ने लगे। खँडहर में और नीम के पेड़ के नीचे आठ आदमी बेहोश हुए थे जो सब इकट्ठे किए गए। दो आदमी जो घोड़ों की हिफाजत करने के लिए रह गये थे और बेहोश नहीं हुए थे वे तो न मालूम कहाँ भाग ही गए थे, अब साधु रह गए सो उनके शरीर का कहीं पता न लगा। चारों तरफ खोज होने लगी।
राजा वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और तारासिंह को साथ लिए हुए कमला उस कोठरी में पहुँची जिसमें दीवार के साथ लगी हुई पत्थर की मूरत थी, जिसमें एक दफे रात के समय कामिनी जा चुकी थी, और जिसका हाल ऊपर के किसी बयान में लिखा जा चुका है। इसी कोठरी में पत्थर की मूरत के पास ही साधु महाशय बेहोश पड़े हुए थे।
तेजसिंह––(मूरत को अच्छी तरह देखकर) मालूम होता है कि शाहदरवाजे से इस मूरत का कोई सम्बन्ध है।
वीरेन्द्रसिंह––शायद ऐसा ही हो, क्योंकि मुझे यह खँडहर तिलिस्मी मालूम होता है। हाय, बेचारा लड़का इस समय कैसी मुसीबत में पड़ा हुआ है। अब दरवाजा खुलने की तरकीब किससे पूछी जाय और उसका कैसे पता लगे? मेरी राय तो यह है कि इस खँडहर में जो कुछ मिट्टी-चूना पड़ा है, सब बाहर फिकवाकर जगह साफ करा दी जाय और दीवार तथा जमीन भी खोदी जाय।
तेजसिंह––मेरी भी यही राय है।
तारासिंह––जमीन और दीवार खुदने से जरूर काम चल जायगा। तहखाने की दीवार खोदकर हम लोग अपना रास्ता निकाल लेंगे, बल्कि और भी बहुत-सी बातों का