पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/७५

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जीतसिंह को सहज ही निकाल लाऊँ।

शिवदत्त––ओ हो, यदि ऐसा हो तो क्या बात है। परन्तु आपको इस खँडहर में कोई जाने क्यों देगा और बिना खँडहर में गये आप तहखाने के अन्दर पहुँच नहीं सकते।

रूहा––नहीं-नहीं, खँडहर में जाने की कोई जरूरत नहीं हैं, मैं बाहर ही बाहर अपना काम कर सकता हूँ।

शिवदत्त––तो फिर ऐसे काम में क्यों न जल्दी की जाय?

रूहा––मेरी राय है कि आप या आपके लड़के भीमसेन पाँच सौ बहादुरों को साथ लेकर मेरे साथ चलें, यहाँ से लगभग दो कोस जाने के बाद एक छोटा सा टूटा-फूटा मकान मिलेगा, पहले उसे घेर लेना चाहिए।

शिवदत्त––उसके घेरने से क्या फायदा होगा?

रूहा––इस खँडहर में से एक सुरंग गई है जो उसी मकान में निकली है, ताज्जुब नहीं है कि वीरेन्द्रसिंह वगैरह उस राह सेभाग जायँ इसलिए उस पर कब्जा कर लेना चाहिए। सिवाय इसके एक बात और है!

शिवदत्त––वह क्या?

रूहा––उसी मकान में से एक दूसरी सुरंग उस तहखाने में गई है जिसमें कुँअर इन्द्रजीतसिंह हैं। यद्यपि उस सुरंग की राह से इस तहखाने तक पहुँचते-पहुँचते पाँच दरवाजे लोहे के मिलते हैं जिनका खोलना अति कठिन है परन्तु खोलने की तरकीब मुझे मालूम है। वहाँ पहुँचकर मैं और भी कई काम करूँगा।

शिवदत्त––(खुश होकर) तब तो सबके पहले हमें वहाँ ही पहुँचना चाहिए

रूहा––बेशक ऐसा ही होना चाहिए, पांच सौ सिपाही लेकर आप मेरे साथ चलिये या भीमसेन चलें, फिर देखिये मैं क्या करता हूँ।

शिवदत्त––अब भीमसेन को तकलीफ देना तो मैं पसन्द नहीं करता।

रूहा––यह बहुत थक गये हैं और कैद की मुसीबत उठा कर कमजोर भी हो गये हैं, यहाँ का इन्तजाम इन्हें सुपुर्द कीजिए और आप मेरे साथ चलिये।

इसके कुछ ही देर बाद शिवदत्त पाँच सौ फौज को लेकर रूहा के साथ उत्तर की तरफ रवाना हुआ। इस समय पहर भर रात बाकी थी, चाँद ने भी अपना चेहरा छिपा लिया था मगर नरमदिल तारे डबडबाई हुई आँखों से दुष्ट शिवदत्त और उसके साथियों की तरफ देख-देख अफसोस कर रहे थे।

ये पाँच सौ लड़ाके घोड़ों पर सवार थे, रूहा और शिवदत्त अरबी घोड़ों पर सवार सबके आगे-आगे जा रहे थे। रूहा केवल एक तलवार कमर से लगाये हुए था मगर शिवदत्त पूरे ठाठ से था कमर में कटार और तलवार तथा हाथ में नेजा लिये हुए बड़ी खुशी से घुल-घुल कर बातें करता जाता था। सड़क पथरीली और ऊँची-नीची थी इसलिए ये लोग पूरी तेजी के साथ नहीं जा सकते थे तिस पर भी घंटे भर चलने के बाद एक छोटे से टूटे-फूटे मकान दीवार पर रूहा की नजर पड़ी और उसने हाथ का