पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/९०

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सकती है। जो कोई उसे जानता है वहीं कहेगा कि कमलिनी को कोई जीत नहीं सकता।

औरत––हाँ ठीक है परन्तु मैं खूब जानती हूँ कि तुम कमलिनी से ज्यादा ताकत रखते हो।

भूतनाथ––(चौंक और काँप कर) इसका क्या मतलब?

औरत––मतलब यही कि तुम अगर चाहो तो उसे मार सकते हो।

भूतनाथ––मगर मैं ऐसा क्यों करने लगा?

औरत––केवल मेरी आज्ञा से।

इतना सुनते ही भूतनाथ के चेहरे पर मुर्दनी छा गई, उसका कलेजा काँपने लगा और सिर कमजोर होकर चक्कर खाने लगा, यहाँ तक कि वह अपने को सँभाल न सका और जमीन पर बैठ गया। मालूम होता था कि उस औरत की आखिरी बात ने उसका खून निचोड़ लिया है। न मालूम क्या सबब था कि निडर होकर भी एक साधारण और अकेली औरत की बातों का जवाब नहीं दे सकता और उसकी सूरत से मजबूरी और लाचारी झलक रही है।

भूतनाथ की ऐसी अवस्था देखकर उस औरत को किसी तरह का रंज नहीं हुआ बल्कि वह मुस्कुराई और उसी जगह घास पर बैठ कर न मालूम क्या सोचने लगी। थोड़ी देर बाद जब भूतनाथ का जी ठिकाने हआ तो उसने उस औरत की तरफ देखा और हाथ जोड़कर कहा, "क्या सचमुच मुझे ऐसा हुक्म लगाया जाता है?"

औरत––हाँ, कमलिनी का सिर लेकर मेरे पास हाजिर होना पड़ेगा और यह काम सिवाय तेरे और कोई भी नहीं कर सकता, क्योंकि वह तुझ पर विश्वास रखती है।

भूतनाथ––(कुछ सोचकर) नहीं-नहीं, मेरे किए यह काम न होगा। जो कुछ कर चुका हूँ उसी के प्रायश्चित से आज तक छुट्टी नहीं मिलती।

औरत––क्या तू मेरा हुक्म टाल सकता है? क्या तुझमें इतनी ताकत है?

यह सुन भूतनाथ बहुत बेचैन हुआ। वह उठ खड़ा हुआ और सिर नीचा किए इधर-उधर टहलने और नीचे लिखी बातें धीरे-धीरे बोलने लगा––

"आह मुझ-सा बदनसीब भी दुनिया में कोई न होगा। मुद्दत तक मुर्दो में अपनी गिनती कराई, अब ऐसा संयोग हो गया कि अपने को जीता-जागता साबित करूँ, मगर अफसोस, करी-कराई मेहनत मिट्टी हुआ चाहती है। हाय, उस आदमी के साथ जिसमें नेकी कूट-कूटकर भरी है, मैं बदी करने के लिए मजबूर किया जा रहा हूँ। क्या उसके साथ बदी करने वाला कभी सुख भोग सकता है? नहीं-नहीं, कभी नहीं, फिर मैं ऐसा क्यों करूँ? मगर मेरी जान क्योंकर बच सकती है इसका हुक्म न मानना मेरी कुदरत के बाहर है। हाय, एक दफे की भूल जन्म-भर के लिए दुःखदाई हो जाती है। शेरसिंह सच कहता था, इन्हीं बातों को सोचकर उसने मेरा नाम 'काल' रख दिया था और उसे मेरी सुरत से घृणा हो गई थी। (कुछ देर तक चुप रहकर) ओफ, मैं भी व्यर्थ के विचार में पड़ा है, आखिर जान तो जायेगी ही, इसका हुक्म मानूँगा तो भी मारा जाऊँगा और यदि न मानूँगा तो भी मौत की तकलीफ उठाऊँगा और तमाम दुनिया में मेरी बुराई