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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१०५

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हो जाना चाहिए फिर एकान्त में जो कुछ कहोगी मैं सुनूंगा।

दोनों वहाँ से रवाना होकर बात-की-बात में गंगा के किनारे जा पहुँचे। वहाँ दारोगा ने खूब अच्छी तरह अपनी नाक धोकर मरहम की पट्टी बाँधी जो उसके बटुए में मौजूद थी और इसके बाद मल्लाह को कुछ देकर मायारानी को साथ लिए दारोगा साहब गंगा पार हो गये। दारोगा ने वहाँ भी दम न लिया और लगभग आध कोस के सीधे जाकर एक गांव में पहुंचे जहां घोड़ों के सौदागर लोग रहा करते थे और उनके पास हर प्रकार के कमकीमत और बेशकीमत घोड़े मौजूद रहा करते थे। यहाँ पहुँच कर दारोगा ने मायारानी ने कहा कि "तेरे पास कुछ रुपया-अशर्फी है या नहीं?" इसके जवाब में मायारानी ने कहा कि 'रुपये तो नहीं हैं मगर अफियाँ हैं और जवाहरात का एक डिब्बा भी जो तिलिस्मी बाग से भागते समय साथ लाई थी, मौजूद है।"

का आसमान पर सुबह की सफेदी अच्छी तरह फैली न थी। गाँव में बहुत कम आदमी जागे थे। मायारानी से पचास अशर्फी लेकर और उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर दारोगा साहब सराय में गये और थोड़ी ही देर में दो घोड़े मय साज के खरीद लाए। मायारानी और दारोगा दोनों घोड़ों पर सवार होकर दक्खिन की तरफ इस तेजी के साथ रवाना हुए कि जिससे जाना जाता था कि इन दोनों को अपने घोड़ों के मरने की कोई परवाह नहीं है, इसके बाद जब एक जंगल में पहुँचे तो दोनों ने अपने-अपने घोड़ा की चाल कम की और बातचीत करते हुए जाने लगे।

दारोगा-अब हम लोग ऐसी जगह आ पहुँचे हैं जहाँ किसी तरह का डर नहीं है, अब तुम्हें जो कुछ कहना हो कहो।

मायारानी-इसके पहले कि आपके छूटने का हाल आपसे पूछूं, जिस दिन से आप मुझसे अलग हुए हैं उस दिन से लेकर आज तक का अपना किस्सा मैं आपसे कहना चाहती हूं जिसके सुनने से आपको पूरा-पूरा हाल मालूम हो जायगा और आप स्वयं कहेंगे कि मैं हर तरह से बेकसूर हूँ।

दारोगा-ठीक है, जितने विस्तार के साथ तुम कहना चाहो कहो, मैं सुनने के लिए तैयार हूँ।

मायारानी ने ब्यौरेवार अपना हाल दारोगा से कहना शुरू किया जिसमें तेजसिंह का पागल बन के तिलिस्मी बाग में आना, चंडूल का पहुँचना, राजा गोपालसिंह का कैद से छूटना, लाड़िली का मायारानी से अलग होना, धनपत की गिरफ्तारी, अपना भागना, तिलिस्म का हाल सुरंग में राजा गोपालसिंह, कमलिनी लाड़िली, भूतनाथ और देवीसिंह का आना, नकली दारोगा का पहुँचना और उससे बातचीत करके धोखा खाना इत्यादि जो कुछ हुआ था सच-सच दारोगा से कह सुनाया, इसके बाद दारोगा की चिट्ठी पढ़ना और फिर असली दारोगा के विषय में धोखा खाना भी कुछ बनावट के साथ बयान किया जिसे बड़े गौर से दारोगा साहब सुनते रहे और जब मायारानी अपनी बात खतम कर चुकी तो बोले

दारोगा---अब मुझे मालूम हुआ कि जो कुछ किया हरामजादी नागर ने किया .. और तु बेकसूर है, या अगर तुझसे किसी तरह का कसूर हुआ भी तो धोखे में हुआ,