पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१८८

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लगाई। बलभद्रसिंह होश में आकर उठ बैठे और ताज्जुब-भरी निगाहों से चारों तरफ देखने लगे। तारा, कमलिनी और लाडिली पर निगाह पड़ते ही उद्योग करने पर भी न रुकने वाले आँसू उनकी आँखों में डबडबा आये और उन्होंने कमलिनी की तरफ देखकर काँपती हुई आवाज में कहा, "क्या तारा ने मेरे या अपने विषय में कोई बात कही है? तुम लोग जिस निगाह से मुझे देख रही हो उससे साफ मालूम होता है कि तारा ने मुझे पहचान लिया और मेरे तथा अपने विषय में कुछ कहा है!"

कमलिनी-(गद्गद होकर) जी हाँ, तारा ने अपना और आपका परिचय देकर मुझे बड़ा ही प्रसन्न किया है।

बलभद्रसिंह-तो बस, अब मैं अपने को क्योंकर छिपा सकता हूँ और इस बात से क्योंकर इनकार कर सकता हुँ कि मैं तुम तीनों बहिनों का बाप हूँ। आह! मैं अपने दुश्मनों से अपना बदला स्वयं लेने की नीयत से थोड़े दिन तक और अपने को छिपाना चाहता था मगर समय ने ऐसा न करने दिया! खैर मर्जी परमात्मा की! अच्छा कमलिनी, सच कहना, क्या तुझे इस बात का गुमान भी था कि तेरा बाप जीता है?

कमलिनी-मैं अफसोस के साथ कहती हूँ कि कई पितृपक्ष ऐसे बीत गए जिनमें मैं आपके नाम तिलांजलि दे चुकी हूँ क्योंकि मुझे विश्वास दिलाया गया था कि हम लोगों के सिर पर से हमारे प्यारे बाप का साया जाता रहा और इस बात को भी एक जमाना गुजर गया। जो हो, मगर आज हमारी खुशी का अन्दाजा कोई भी नहीं कर सकता।

बलभद्रसिंह उठ कर तारा के पास गये जिसमें चलने-फिरने की ताकत अभी तक नहीं आई थी, तारा उनके गले से लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी। उसके बाद लाड़िली की नौबत आई और उसने भी रो-रो कर अपने कपड़े भिगोये और मायारानी को गालियाँ देती रही। आधे घंटे तक यही हालत रही, अन्त में तेजसिंह ने सभी को समझा-बुझा कर शान्त किया और फिर बातचीत होने लगी।

देवीसिंह-(बलभद्रसिंह से) मैं आपसे माफी मांगता हूँ, मुझसे जो कुछ भूल हुई वह अनजाने में हुई है!

बलभद्रसिंह-(हँस कर) नहीं-नहीं, मुझे इस बात का रंज कुछ भी नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि अब मुझे केवल आप ही लोगों का भरोसा रह गया है, मगर अफसोस इतना ही है कि भूतनाथ आप लोगों का दोस्त है और मैं उसे किसी तरह भी माफ नहीं कर सकता।

तेजसिंह-हम लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हो रहा है और बिल्कुल समझ में नहीं आता कि आपके और भूतनाथ के बीच में किस बात की ऐंठन पड़ी हुई है।

बलभद्रसिंह-(तेजसिंह से) मालूम होता है कि अभी तक आपने वह गठरी नहीं खोली जो आपने एक औरत के हाथ से छीनी थी और जो इस समय भी मैं आपके पास देख रहा हूँ।

तेजसिंह-(गठरी दिखाकर) नहीं, मैंने इसे अभी तक नहीं खोला।

बलभद्रसिंह-तभी आप ऐसा पूछते हैं, अच्छा अब इसे खोलिये।