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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२०४

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देवीसिंह―केवल यही नहीं बल्कि मैंने कई और बातें भी उससे पूछीं।

तेजसिंह―तुममें और भूतनाथ में जो-जो बातें हुईं सब कह जाओ।

वह तस्वीर एक-एक करके सभी ने देखी और तब देवीसिंह उन बातों को दोहरा गये जो उनके और भूतनाथ के बीच में हुई थीं। उनके सुनने से सभी को ताज्जुब हुआ और सभी कोई सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए।

कमलिनी―(तारा से)बहिन, वेशक तुम इस विषय में हम लोगों से बहुत ज्यादा गौर कर सकती हो, फिर भी इतना मैं कह सकती हूँ कि मेरे पिता में, जो भूतनाथ से मिलने गए हैं, और इस तस्वीर में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है।

तारा―क्या कहूँ अक्ल कुछ काम नहीं करती! मैं उन्हें अच्छी तरह पहचानती हूँ और इस तस्वीर को भी अच्छी तरह पहिचानती हूँ। इस तस्वीर को तो हम तीन में से जो देखेगा वही कहेगा कि हमारे पिता की है, मगर इनको केवल मैं ही पहचानती हूँ। जिस जमाने में मैं और ये एक ही कैदखाने में थे, उसी जमाने में इनकी सूरत-शक्ल में बहुत फर्क पड़ गया था। (चौंककर) आह, मुझे एक पुरानी बात याद आई है जो इस भेद को तुरन्त साफ कर देगी!

कमलिनी―वह क्या?

तारा―तुम्हें याद होगा कि जब हम छोटे-छोटे बच्चे थे और लाड़िली बहुत ही छोटी थी तो इसे उसे एक दफे बुखार आया था और वह बुखार बहुत ही कड़ा था यहाँ तक कि सरसाम हो गया था और उसी पागलपन में इसने पिताजी के मोढ़े पर दाँत से काट लिया था।

कमलिनी―ठीक है, अब मुझे भी यह बात याद पड़ी। इतने जोर से दाँत काटा था कि सेरों खून निकल गया था। जब तक वे हम लोगों के साथ रहे तब तक मैं बराबर उस निशान को देखती थी। मुझे विश्वास है कि सौ वर्ष बीत जाने पर भी वह दाग मिट नहीं सकता।

तारा―बेशक ऐसा ही था और हमने-तुमने मिलकर यह सलाह गाँठी थी कि दाँत काटने के बदले में लाड़िली को खूब मारेंगे। आखिर वह लड़कपन का जमाना ही तो था!

कमलिनी―हाँ और यह बात हमारी माँ को मालूम हो गई थी और उसने हम दोनों को समझाया था।

तारा की यह बात ऐसी थी कि इसने लड़कपन के जमाने की याद दिला दी और कमलिनी तथा लाड़िली को तो इस बात में कुछ भी शक न रहा कि तारा बेशक लक्ष्मीदेवी है मगर बलभद्रसिंह के विषय में जरूर कुछ शक हो गया और उनके विषय में दोनों ने यह निश्चय कर लिया कि बलभद्रसिंह भूतनाथ से मिलकर लौटें तो किसी बहाने से उनका मोढ़ा देखा जाय, साथ ही यह भी निश्चय कर लिया कि इसके बाद ही कोई आदमी भूतनाथ के साथ जाय और उस कैदी को भी देखे, बल्कि जिस तरह बने, उसे छुड़ाकर ले आवे।

इतने ही में तालाब के बाहर से कुछ शोरगुल की आवाज आई। तेजसिंह ने पता