पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
224
 


देखा और अब क्या करेगा यह जानने के लिए सभी की निगाह उसी तरफ अटक गई।

थोड़ी देर बाद उस छत पर नीचे की तरफ से आती हुई रोशनी दिखाई दी जिससे मालूम हुआ कि उसकी छत इस समय पुनः तोड़ी गयी है और नीचे की कोठरी में और भी कई आदमी हैं। रोशनी दिखाई देने के बाद दो आदमी और निकल आये और तीन आदमी उस छत पर दिखाई देने लगे। अब पूरी तरह निश्चय हो गया कि उस मकान की छस तोड़ी गई है। उन तीनों आदमियों ने बड़े गौर से उस तरफ देखा जहाँ किशोरी, कामिनी इत्यादि खड़ी थीं, मगर कुछ दिखाई न दिया, इसके बाद उन तीनों ने झुककर छत के नीचे से एक भारी गठरी निकाली। उसके बाद नीचे से दो आदमी और निकलकर छत पर आ गये तथा अब वहाँ पांच आदमी दिखाई देने लगे।

कमलिनी ने कमला का हाथ पकड़ के कहा, "बहिन, इन शैतानों की कार्रवाई बेशक देखने और जाँचने योग्य है, ताज्जुब नहीं कि कोई अनूठी बात मालूम हो, अस्तु तू जाकर जल्दी से तेजसिंहजी को इस मामले की खबर कर दे, फिर जो कुछ उनके जी में आयेगा, वह करेंगे।" इतना सुनते ही कमला तेजसिंह की तरफ चली गई और सब फिर उसी तरफ देखने लगीं।

थोड़ी देर तक वे पांचों आदमी बैठकर उस गठरी के साथ न मालम क्या करते रहे, इसके बाद कमन्द के जरिये वह गठरी बाहर की तरफ बाग में उतार दी गई। उसके पीछे वे पांचों आदमी भी बाग में उतर आये और गठरी लिए हुए बाग के बीचोंबीच वाले उस कमरे की तरफ चले गये जिसमें पहले किशोरी रहा करती थी। उसी समय कमला भी लौटकर आ पहुँची और बोली, "तेजसिंहजी को खबर कर दी गयी और वे देवीसिंहजी वगैरह ऐयारों को साथ लेकर किसी गुप्त बाग में गये हैं।"

कमलिनी-मुझे भी वहां जाना उचित है!

किशोरी–क्यों?

कमलिनी-उस मकान के गुप्त भेद की खबर तेजसिंह को नहीं है, कदाचित् कोई आवश्यकता पड़े।

किशोरी-कोई आवश्यकता न पड़ेगी, बस, चुपचाप खड़ी तमाशा देखो।

लक्ष्मीदेवी-इनमें से अगर एक आदमी को भी तेजसिंह पकड़ लेंगे तो सब भेद खुल जायगा।

कमलिनी-हाँ, सो तो है।

कमला—मैं समझती हूँ कि उस मकान के अन्दर और भी कई आदमी होंगे। अगर वे सब गिरफ्तार हो जाते तो बहुत ही अच्छा होता।

कमलिनी-इसी से तो मैं कहती हूँ कि मुझे वहाँ जाने दो। मेरे पास तिलिस्मी खंजर मौजूद है, मैं बहुत कुछ कर गुजरूंगी।

किशोरी- नहीं बहिन, मैं तुम्हें कदापि न जाने दूंगी, मुझे डर लगता है, तुम्हारे बिना मैं यहाँ नहीं रह सकती।

कमलिनी ... खैर, मैं न जाऊँगी। तुम्हारे ही पास रहूँगी।

अब हम बाग के उस हिस्से का हाल लिखते हैं जिसमें वे पांचों आदमी गठरी