पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२३०

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छा गया और बाबाजी ने घबराई आवाज में इस आदमी से पूछा, "आप कौन हैं?"

आदमी-हम जिन्न हैं।

बाबाजी-मैं समझता हूँ कि जिन्न किसे कहते हैं।

आदमी-जिन्न उसको कहते हैं जो सब जगह पहुँच सके, भूत भविष्य वर्तमान तीनों कालों का हाल जाने, कोई हरबा उस पर असर न करे और जो किसी के मारने से न मरे।

बाबाजी-(ताज्जुब से) तो क्या ये सब गुण आप में हैं

जिन्न–बेशक!

बाबाजी-मैं कैसे समझूं?

जिन्न-आजमा के देख लो!

बाबाजी तो उस जिन्न से बातें कर रहे थे, मगर मायारानी और शेरअलीखाँ का डर के मारे कलेजा सूख रहा था। मायारानी तो औरत ही थी मगर शेरअलीखां बहादुर होकर डर के मारे काँप रहा था। इसका सबब शायद यह हो कि मुसलमान लोग जिन्न का होना वास्तविक और सच मानते हैं। जो हो मगर बाबाजी अर्थात् दारोगा को जिन्न की बात का विश्वास नहीं हो रहा था, फिर भी जिस समय उसने कहा कि 'आजमा के देख लो' तो उस समय दारोगा भी बेचैन हो गया और सोचने लगा कि इसे किस तरह आजमावें?

जिन्न - शायद तुम सोच रहे हो कि इस जिन्न को किस तरह आजमावें क्योंकि तुम्हारे पास कोई जरिया आजमाने का नहीं है। अच्छा, हम खुद अपनी बात का सबूत देते हैं, लो, सम्हल जाओ!

इतना कहकर उस जिन्न ने अपना बदन झाड़ा और अंगड़ाई ली, इसके बाद ही उसके तमाम बदन में से आग की चिनगारियां निकलने लगी और इतनी ज्यादा चमक पैदा हई कि सभी की आँखें चौंधियाने लगीं। यह चिनगारियां और चमक उस फौलादी जर्र: और जाल में से निकल रही थी जो वह अपने बदन में पहने हुए था। यह हाल देखकर मायारानी, शेरअलोखाँ और पांचों आदमी घबरा गये मगर दारोगा को फिर भी विश्वास न हुआ, तिलिस्मी खंजर की तरह उसके जर्र: और जाल में भी किसी प्रकार का तिलिस्मी असर खयाल करके उसने अपने दिल को समझा लिया और कहा।

दारोगा-खैर, इससे हमें कोई मतलब नहीं, आप यह कहिये कि यहाँ किस काम से आये हैं?

जिन्न-(चिनगारियों और चमक को बन्द करके)तुम लोगों की हरामजदगी का तमाशा देखने और तुम लोगों के कामों में विघ्न डालने के लिए।

दारोगा-यह तो मैं खूब जानता हूँ कि तुम न तो जिन्न हो और न शैतान ही बल्कि कोई धूर्त ऐयार हो। यह सामान जो तुम्हारे बदन पर है, तिलिस्मी है और सहज में तुम्हें कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता। मगर साथ ही इसके यह भी समझ रखो कि मैं तिलिस्म का दारोगा हूँ और चालीस वर्ष तक तिलिस्म का इन्तजाम करता रहा हूँ।

जिन्न-(जोर से हँसकर) बेईमान, हरामखोर, उल्लू का पट्ठा कहीं का!