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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/३८

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सिपाहियों या फौज के बागी होने का खौफ न दीवान-मुत्सद्दियों के बिगड़ने का अन्देशा और न कमलिनी और लाडिली की बेबफाई का रंज-क्योंकि मैं इन सभी को अपनी करामात से नीचा दिखा सकती हैं, हाँ, यदि गोपालसिंह के बारे में कम्बख्त भूतनाथ ने मुझे धोखा दिया है जैसा कि तू कह चुकी है तो बेशक खौफ की बात है। अगर वह जीता है तो मुझे बुरी तरह हलाल करेगा। वह इस बात से कदापि नहीं डरेगा कि मेरा भेद खुलने से उसकी बदनामी होगी, क्योंकि मैंने उसके साथ बहुत बुरा सलूक किया है। जिस समय कम्बख्त कमलिनी और वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने गोपालसिंह को कैद से छुड़ाया था, यदि गोपालसिंह चाहती तो उसी समय मुझे जहन्नुम को भेज सकता था। मगर उसका ऐसा न करना मेरा कलेजा और भी दहला रहा है, शायद मौत से भी बढ़कर कोई सजा उसने मेरे लिए सोच ली है, हाय अफसोस! मैंने तिलिस्मी भेद जानने के लिए उसे क्यों इतने दिनों तक कैद में रख छोड़ा! उसी समय उसे मार डाला होता तो यह बुरा दिन क्यों देखना पड़ता? हाय, अब तो मौत से भी कोई भारी सजा मुझे मिलने वाली है। (रोती है)

लीला-अब रोने का समय नहीं है, किसी तरह जान बचाने की फिक्र करनी चाहिए।

मायारानी-(हिचकी लेकर) क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? किससे मदद माँगू? ऐसी अवस्था में कौन मेरी सहायता करेगा? हाय, आज तक मैंने किसी के साथ किसी तरह की नेकी नहीं की, किसी को अपना दोस्त न बनाया और किसी पर अहसान का बोझ न डाला। फिर किसी को क्या गरज पड़ी है, जो ऐसी अवस्था में मेरी मदद करे। वीरेन्द्रसिंह के लड़कों के दुश्मनी करना मेरे लिए और भी जहर हो गया।

लीला-खैर, जो हो गया सो हो गया, अव इस समय इन सब बातों का सोचविचार करना और भी बुरा है। मैं इस मुसीबत में हर तरह तुम्हारा साथ देने के लिए तैयार हूँ और अब भी तुम्हारे पास ऐसी-ऐसी चीजें हैं कि उनसे कठिन से कठिन काम निकल सकता है रुपये-पैसे की तरफ से भी कुछ तकलीफ नहीं हो सकती, क्योंकि सेरों जवाहिरात पास में मौजूद हैं फिर इतनी चिन्ता क्यों कर रही हो?

मायारानी- चिन्ता क्यों न की जाये? एक मनोरमा का मकान छिपकर रहने योग्य था सो वहाँ भी वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों के चरण जा पहुँचे। तू ही कह चुकी है कि किशोरी और कामिनी को ऐयार लोग छुड़ाकर ले गये। नागर को भी उन लोगों ने फंसा लिया होगा। अब सबसे पहला काम तो यह है कि छिपकर रहने के लिए कोई जगह खोजी जाये इसके बाद जो कुछ करना होगा किया जायेगा। हाय, अगर गोपालसिंह की मौत हो गई होती तो न मुझे रिआया के बागी होने का डर था और न राजा वीरेन्द्रसिंह की दुश्मनी का।

लीला---छिपकर रहने के लिए मैं जगह का बन्दोबस्त कर चूकी हूँ। यहाँ से थोड़ी ही दूर पर....

लीला इससे ज्यादा कुछ कहने न पाई थी कि पीछे की तरफ से कई आदमियों के दौड़ते हुए आने की आहट मालूम हुई। बात-की-बात में वे लोग, जो वास्तव में चोर