पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
45
 


खम्भे वाला वह दरवाजा बन्द हो गया जिस राह से तीनों नीचे उतरे थे। इसके बाद गोपालसिंह उत्तर तरफ वाली दीवार के पास गये और दरवाजा खोलने का उद्योग करने लगे। उस दरवाजे में ताँबे की सैकड़ों कीलें गड़ी हुई थीं और हर कील के मुंह पर उभड़ा हुआ एक-एक अक्षर बना हुआ था। यह दरवाजा उसी सुरंग में जाने के लिए था जो दारोगा वाले बँगले के पीछे वाले टीले तक पहँची हुई थी या जिस सुरंग के अन्दर भूतनाथ और देवीसिंह का जाना ऊपर के बयान में हम लिख आये हैं। गोपालसिंह ने दरवाजे में लगी हुई कीलों को दबाना शुरू किया। पहले उस कील को दबाया जिसके सिरे पर 'हे' अक्षर बना हुआ था, इसके बाद 'र' अक्षर की कील को दबाया, फिर 'म' और 'ब' अक्षर की कील को दबाया ही था कि दरवाजा खुल गया और दोनों सालियों को साथ लिए हुए गोपालसिंह उसके अन्दर चले गये तथा भीतर जाकर हाथ के जोर से दरवाजा बन्द कर दिया। इस दरवाजे के पिछली तरफ भी वे ही बातें थीं जो बाहर थों अर्थात् भीतर से भी उसमें वैसी ही कीलें जड़ी हुई थीं। भीतर चार-पाँच कदम जाने के बाद सुरंग की जमीन स्याह और सफेद पत्थरों से बनी हई मिली और उसी जगह पहुँचे जहाँ भूतनाथ और देवी सिंह खड़े थे। ये लोग भी ठीक उसी समय वहाँ पहुँचे जब मायारानी की चलाई हुई गोली में से जहरीला धुआँ निकलकर सुरंग में फैल चुका था और दोनों ऐयार बेहोशी के असर से झूम रहे थे। कमलिनी, लाड़िली तथा राजा गोपालसिंह इस धुएँ से बिल्कुल बेखबर थे और उन्हें इस बात का गुमान भी न था कि मायारानी ने इस सुरंग में पहुँच कर तिलिस्मी गोली चलाई है क्योंकि गोली चलाने के बाद तुरन्त ही मायारानी ने अपने हाथ की मोमबत्ती बुझा दी थी।

राजा गोपालसिंह ने वहाँ पहुँचकर भूतनाथ और देवीसिंह को देखा। कमलिनी ने भूतनाथ को पुकारा, मगर बेहोशी का असर हो जाने के कारण उसने कमलिनी की बात का जवाब न दिया बल्कि देखते-देखते भूतनाथ और देवीसिंह वेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। कमलिनी, लाड़िली और गोपालसिंह के भी नाक और मुँह में वह धुआँ गया मगर ये उसे पहचान न सके और भूतनाथ तथा देवीसिंह के बेहोश हो जाने के बाद ही ये तीनों भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े।

आधी घड़ी तक राह देखने के बाद मायारानी और नागर ने मोमबत्ती जलाई। खुशी-खुशी उन दोनों औरतों ने बेहोशी से बचाने वाली दवा अपने मुँह में रक्खी और स्याह पत्थरों से अपने को बचाती हुई वहाँ पहुँची जहाँ कमलिनी, लाड़िली, गोपालसिंह, भूतनाथ और देवीसिंह बेहोश पड़े हुए थे।

अहा, इस समय मायारानी की खुशी का कोई ठिकाना है! इस समय उसकी किस्मत का सितारा फिर से चमक उठा। उसने हँस कर नागर की तरफ देखा और कहा

माया-क्या अब भी मुझे किसी का डर है?

नागर—आज मालूम हुआ कि आपकी किस्मत बड़ी जबरदस्त है। अब दुनिया में कोई भी आपका मुकाबला नहीं कर सकता। (भूतनाथ की तरफ देखकर) देखिए, इस बेईमान की कमर में वही तिलिस्मी खंजर है जो कमलिनी ने इसे दिया था। अहा,