पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/६२

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बाबाजी उसी समय उठ खड़े हुए और जमानिया की तरफ रवाना हो गए। मायारानी तब तक बराबर देखती रही जब तक कि वे पेड़ों की आड़ में होकर नजरों से गायब न हो गये। इसके बाद हँसकर नागर की तरफ देखा और कहा

मायारानी-तुम समझती हो कि बाबाजी को मैंने जिद करके इसी समय यहाँ से क्यों धता बतायी?

नागर-जाहिर में जो कुछ तुमने बाबाजी से कहा है और जिस काम के लिए उन्हें भेजा है यदि उसके सिवाय और कोई मतलब है तो मैं कह सकती हूँ कि मेरी समझ में कुछ न आया।

मायारानी-(हँस कर) अच्छा तो अब मैं समझा देती हूँ। बाबाजी के सामने मैंने अपने को जितना बताया वास्तव में मेरे दिल में उतना दुःख और रंज नहीं है, क्योंकि जिसका डर था, जिसके निकल जाने से मैं परेशान थी, जिसका प्रकट होना मेरे लिए मौत का सबब था और जो मुझसे बदला लिए बिना मानने वाला न था, अर्थात् गोपालसिंह, वह मेरे कब्जे में आ चुका। अब अगर दुःख है तो इतना ही कि कम्बख्त दारोगा ने उसे मारने न दिया। मगर मैं बिना उसकी जान लिए कब मानने वाली हूँ, इसलिए मैंने किसी तरह बाबाजी को यहाँ से धता बतायी।

नागर–तो क्या तुम्हारा मतलब यह था कि बाबाजी यहाँ से बिदा हो जायें तो अपने कैदियों को मार डालो?

मायारानी-बेशक इसी मतलब से मैंने बाबाजी को यहाँ से निकाल बाहर किया क्योंकि अगर वह रहता तो कैदियों को मारने न देता और उसमें जो कुछ करामात है सो तुम देख ही चुकी हो। अगर ऐसा न होता तो मैं सुरंग ही में उन सभी को मारकर निश्चिन्त हो जाती।

नागर-मगर बाबाजी ने उस कोठरी की ताली तो तुम्हें दी नहीं जिसमें कैदियों को रखा है।

मायारानी–ठीक है बाबाजी इस एक बात में चालाकी कर गए। कैदखाने की कोठरी क्योंकर खुलती है सो मुझे नहीं बताया और न कोई ताली वहाँ की मुझे दी, मगर यह मैं पहले ही समझे हुई थी कि बाबाजी कैदियों को जरूर किसी ऐसी जगह रखेंगे, जहाँ मैं जा नहीं सकती, इसलिए तो बाबाजी से मैंने कहा कि कैदियों को मैगजीन के बगल वाली कोठरी में कैद करो। बाबाबाजी मेरा मतलब नहीं समझ सके और धोखे में आ गये।

नागर-इस से तो यही जाहिर होता है कि उस कोठरी में तुम जा सकती हो।

मायारानी- नहीं, उस कोठरी में मैं नहीं जा सकती, मगर मैगजीन की कोठरी तक जा सकती हूँ।

नागर-(जोर से हँसकर) अहा हा, अब मैं समझी! तुम्हारा मतलब यह कि मैगजीन में जहाँ बारूद रखा है वहाँ जाओ और उसमें आग लगाकर इस..


1. अर्थात् बिदा किया।