पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/८२

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था आज वह जाता रहा। अब मैं खुशी से जमानिया के राजकर्मचारियों के सामने मायारानी का इजहार लूँगा, मगर यह तो कहिए कि इस बात का निश्चय आपको क्योंकर हुआ?

तेजसिंह-मैं संक्षेप में आपसे यह कह चुका हूँ कि जब मैं दारोगा की सूरत में सुरंग के अन्दर पहुँचा और मायारानी से मुलाकात हुई, तो आपको होश में लाने के लिए मायारानी से खूब हुज्जत हुई।

गोपालसिंह-हाँ, यह आप कह चुके हैं।

तेजसिंह--उस समय जो-जो बातें माया रानी से हुई वह तो पीछे कहूँगा, मगर मायारानी की थोड़ी-सी बात, जिसे मैंने इस तरह अक्षर-अक्षर खूब याद कर रखा है जैसे पाठशाला के लड़के अपना पाठ याद कर रखते हैं, आप लोगों से कहता हूँ, उसी से आप लोग उस भेद का मतलब निकाल लेंगे। मायारानी ने मुझे समझाने की रीति से कहा था कि--

"यद्यपि आपको इस बात का रंज है कि मैंने गोपालसिंह के साथ दगा की और यह भेद आपसे छिपा रखा, मगर आप भी तो जरा पुरानी बातों को याद कीजिए! खास करके उस अंधेरी रात की बात, जिसमें मेरी शादी और पुतले की बदलौअल हुई थी! आप ही ने तो मुझे यहां तक पहुंचाया! अब अगर मेरी दुर्दशा होगी तो क्या आप बच जायेंगे? मान लिया जाय कि अगर गोपालसिंह को बचा लें तो लक्ष्मीदेवी का बच के निकल जाना आपके लिए दुःखदायी न होगा? और जब इस बात की खबर गोपालसिंह को लगेगी; तो क्या वह आपको छोड़ देगा? बेशक जो कुछ आज तक मैंने किया है, सब आप ही का कसूर समझा जायेगा। मैंने इसे इस लिए कैद किया था कि लक्ष्मीदेवी वाला भेद इसे मालम न होने पावे या इसे इस बात का पता न लग जाय कि दारोगा की करतूत ने लक्ष्मीदेवी की जगह.."

बस इतना कहकर वह चुप हो गई ओर मैंने भी इस भेद को सोचते हुए यह समझकर, कि कहीं बात-ही-बात में मेरा अनजानपन न झलक जावे और मायारानी को यह न मालूम हो जाय कि मैं वास्तव में दारोगा नहीं हूँ, इन बातों का कुछ जवाब देना उचित न जाना और चुप हो रहा।

गोपालसिंह-बस-बस! मायारानी के मुँह से निकली हुई इतनी ही बातें सबूत के लिए काफी हैं और बेशक वह कम्बख्त मेरी स्त्री नहीं है। अब मुझे ब्याह के दिन की कुछ बातें धीरे-धीरे याद आ रही हैं जो इस बात को और भी मजबूत कर रही हैं और इसमें भी कोई शक नहीं कि हरामखोर दारोगा ही सारे सब फसादों की जड़ है।

कमलिनी--मगर उस हरामजादी की बातों से, जैसा कि आपने अभी कहा, यह भी साबित होता है कि दारोगा की मदद से अपना काम पूरा करने के बाद वह मेरी बहिन लक्ष्मीदेवी की जान लेना चाहती थी, मगर वह किसी तरह बच के निकल गई।

तेजसिंह-बेशक ऐसा ही है और मेरा दिल गवाही देता है कि लक्ष्मीदेवी अभी तक जीती है। यदि उसकी खोज की जाय तो वह अवश्य मिलेगी।