पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/११

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ऐसा निशान हो, उसकी लिखावट पर ध्यान न देना ?

इन्द्रजीतसिंह--हाँ, मुझसे उन्होंने ऐसा ही कहा था, इसलिए जाना जाता है कि यह चिट्ठी उन्होंने अपनी इच्छा से नहीं लिखी, बल्कि जबर्दस्ती किये जाने के सबब से लिखी है।

बुड्ढा--नहीं-नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता, आप भूलते हैं, उन्होंने आपसे इस निशान के बारे में कोई दूसरी बात कही होगी।

कुमार-नहीं-नहीं, मैं ऐसा भुलक्कड़ नहीं हूँ। अच्छा आप ही बताइये, यह निशान उन्होंने क्यों बनाया ?

बुड्ढा--यह निशान उन्होंने इसलिए स्थिर किया है कि कोई ऐयार उनके दोस्तों को उनकी लिखावट का धोखा न दे सके। (कुछ सोचकर और हँसकर) मगर कुमार,तुम भी बड़े बुद्धिमान और मसखरे हो !

कुमार--कहो, अब मैं तुम्हारी दाढ़ी नोंच लूं ?

आनन्द्रसिंह--(हंसकर और ताली बजाकर) या मैं नोंच लूं ?

बुड्ढा--(हँसते हुए) अब आप लोग तकलीफ न कीजिए मैं स्वयं इस दाढ़ी को नोंचकर अलग फेंक देता हूँ !

'इतना कह उस बुड्ढे ने अपने चेहरे से दाढ़ी अलग कर दी और इन्द्रजीतसिंह के गले से लिपट गया।

पाठक, यह बुड्ढा वास्तव में राजा गोपाल सिंह थे जो चाहते थे कि सूरत बदल-कर इस तिलिस्म में कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की मदद करें, मगर कुमार की चालाकियों ने उनकी हिम्मत लडने न दी और लाचार होकर उन्हें प्रकट होना ही पड़ा।

कुँअर इन्द्रजीतसिंह-आनन्द सिंह दोनों भाई राजा गोपालसिंह से गले मिले और उनका हाथ पकड़े हुए नहर के किनारे गये जहाँ पत्थर की एक चट्टान पर बैठकर तीनों आदमी बातचीत करने लगे।


3

अब हम रोहतासगढ़ का हाल लिखते हैं। जिस समय बाहर यह खबर आई कि लक्ष्मीदेवी की तबीयत ठीक हो गई और वे सब पर्दे के पास आकर बैठ गईं उस समय राजा वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की तरफ देखा और कहा, "लक्ष्मीदेवी से पूछना चाहिए कि उसकी तबीयत यह कलमदान देखने के साथ ही क्यों खराब हो गई ?"

इसके पहले कि तेजसिंह राजा वीरेन्द्रसिंह की बात का जवाब दें या उठने का इरादा करें, जिन्न ने कहा, "आश्चर्य है कि आप इसके लिए जल्दी करते हैं।"

जिन्न की बात सुन राजा वीरेन्द्रसिंह मुस्कुराकर चुप हो रहे और भूतनाथ का