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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/११७

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इन्द्रजीतसिंह--जी, यह अपना हाल कहा ही चाहती थी कि आप दिखाई पड़ गये। यह यकायक हम लोगों के पास नहीं आई, बल्कि पत्र द्वारा इसने पहले मुझसे प्रतिज्ञा करा ली कि हम लोग इसका दु:ख दूर करेंगे और आप (राजा गोपालसिंह)भी इस पर खफा न होंगे।

गोपालसिंह--(ताज्जुब से)मैं इस पर क्यों खफा होने लगा! (इन्दिरा से)क्यों जी, तुम्हें मुझसे डर क्यों पैदा हुआ?

इन्दिरा--इसलिए कि मेरा किस्सा आपके किस्से से बहुत सम्बन्ध रखता है, और हाँ इतना भी मैं इसी समय कह देना उचित समझती हूं कि मेरा चेहरा जिसे आप लोग देख रहे हैं असली नहीं है बल्कि बनावटी है। यदि आज्ञा हो तो इसी नहर के जल से मैं मुँह धो लूं, तब आश्चर्य नहीं कि आप मुझे पहचान लें।

गोपालसिंह--(ताज्जुब से) क्या मैं तुम्हें पहचान लूंगा?

इन्दिरा--यदि ऐसा हो तो आश्चर्य नहीं।

गोपालसिंह--अच्छा, तुम अपना मुंह धो डालो।

इतना कहकर राजा गोपालसिंह लालटेन जमीन पर रखकर बैठ गए और कुंअर इन्द्रजीतसिंह तथा आनन्दसिंह को भी बैठने के लिए कहा। जब इन्दिरा अपना चेहरा साफ करने के लिए नहर के किनारे चलकर कुछ आगे बढ़ गई, तब इन तीनों में यों बातचीत होने लगी

इन्द्रजीतसिंह--हाँ, यह तो कहिए, आप क्या खबर लाए हैं?

गोपालसिंह--वह किस्सा बहुत बड़ा है, पहले इस लड़की का हाल सुन ले तब कहें। हाँ, इसने अपना नाम क्या बताया था?

इन्द्रजीतसिंह--इन्दिरा।

गोपालसिंह--(चौंककर) इन्दिरा ! इन्द्रजीतसिंह-जी हाँ।

गोपालसिंह--(सोचते हुए, धीरे से) कौन-सी इन्दिरा ? वह इन्दिरा तो नहीं मालूम पड़ती, कोई दूसरी होगी, मगर शायद वही हो, हाँ वह तो कह चुकी है कि मेरी सूरत बनावटी है, आश्चर्य नहीं कि चेहरा साफ करने पर वही निकले, अगर वही हो तो बहुत अच्छा है।

इन्द्रजीतसिंह--खैर, वह आती ही है, सब हाल मालूम हो जायेगा जब तक अपनी अनूठी खबरों में से दो-एक सुनाइये।

गोपालसिंह--यहाँ से जाने के बाद मुझे रोहतासगढ़ का पूरा-पूरा हाल मालूम हुआ है क्योंकि आजकल राजा वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, भैरोंसिंह, तारासिंह, किशोरी, कामिनी, कमलिनी, लाड़िली और मेरी स्त्री लक्ष्मीदेवी इत्यादि सब कोई वहाँ ही जुटे हुए हैं और अजीबोगरीब मुकदमा पेश है।

इन्द्रजीतसिंह--(चौंककर) लक्ष्मीदेवी ! क्या उनका पता लग गया?

गोपालसिंह--हाँ, लक्ष्मीदेवी वही तारा निकली जो कमलिनी के यहां उसकी सखी बनके रहती थी और जिसे आप भी जानते हैं।