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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१३५

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थे इसी सबब से उसका पता न लगता था, क्योंकि जो तहकीकात करने वाले थे वे ही कमेटी करने वाले थे।

इन्द्रजीतसिंह--(इन्दिरा से) अच्छा तब?

इन्दिरा--मेरे पिता दो घण्टे के अन्दर ही राजहमल में जा पहुँचे। राजा साहब ने पहरे वालों को आज्ञा दे रक्खी थी कि इन्द्रदेव जिस समय चाहें हमारे पास चले आवें, कोई रोक-टोक न करने पाये, अतएव मेरे पिता सीधे राजा साहब के पास जा पहुँचे जो गहरी नींद में बेखबर सोये हुए थे और चार आदमी उनके पलंग के चारों तरफ घूमघूम कर पहर। दे रहे थे। पिता ने राजा साहब को उठाया और पहरे वालों को अलग कर देने के बाद अपना पूरा हाल कह सुनाया। यह जानकर राजा साहब को बड़ा ही ताज्जुब हुआ कि कमेटी इसी शहर में है। उन्होंने मेरे पिता से या मेरी माँ से खुलासा हाल पूछने में विलम्ब करना उचित न जाना और मां को हिफाजत के साथ महल के अन्दर भेजने के बाद कपड़े पहनकर तैयार हो गये, खूटी से लटकती हुई तिलिस्मी तलवार ली और मेरे पिता तथा और कई सिपाहियों को साथ ले मकान के बाहर निकले तथा " घड़ी के अन्दर ही उस मकान में जा पहँचे जिसमें कमेटी हुआ करती थी। वह किसी जमाने का बहुत पुराना मकान था जो आधे से ज्यादा गिर कर बर्बाद हो चुका था फिर भी उसके कई कमरे और दालान दुरुस्त और काम देने लायक थे। उस मकान के चारों तरफ टूटे-फूटे और भी कई मकान थे जिनमें कभी किसी भले आदमी का जाना नहीं होता था। जिस कमरे में कमेटी होती थी जब गये तो उसी तरह पर सजा हुआ पाया जैसा राजा साहब और मेरे पिता देख चुके थे। कन्दीलों में रोशनी हो रही थी, फर्क इतना ही था कि फर्श पर तीन लाशें पड़ी हुई थीं, फर्श खून से तरबतर हो रहा था और दीवारों पर खून के छींटे पड़े हुए थे। जब लाशों के चेहरों पर से नकाब हटाया गया तो राजा साहब को बड़ा ही ताज्जुब हुआ।

इन्द्रजीत-–वे लोग भी जान-पहचान के ही होंगे जो मारे गये थे?

गोपालसिंह--जी हाँ, एक तो मेरा वही खिदमतगार था जिसने मुझे धोखा दिया था, दूसरा दामोदरसिंह का नौकर रामप्यारे था जिसने मुझे गंगा-किनारे ले जाकर फंसाया था, परन्तु तीसरी लाश को देखकर मेरे आश्चर्य, रंज और क्रोध का अन्त न रहा क्योंकि वह मेरे खजांची साहब थे, जिन्हें मैं बहुत ही नेक, ईमानदार, सुफी और बुद्धिमान समझता था। आप लोगों को इन्दिरा का कुल हाल सुन जाने पर मालूम होगा कि कम्बख्त दारोगा ही इस सभा का मुखिया था मगर अफसोस, उस समय मुझे इस बात का गुमान तक न हुआ। जब मैं वहाँ की कुल चीजों को लूट कर और उन लाशों को उठवा कर घर आया तो सवेरा हो चुका था और शहर में इस बात की खबर अच्छी तरह फैल चुकी थी क्योंकि मुझे बहुत से आदमियों को लेकर जाते हुए सैकड़ों आदमियों ने देखा था और जब मैं लौट कर आया तो दरवाजे पर कम से कम पांच सौ आदमी


1.चन्द्रकान्ता सन्तति, आठवें भाग के छठे बयान में इसी पुरानी आबादी और टूटे-फूटे मकानों का हाल लिखा गया है।