सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
168
 

मनोरमा लगी हुई थी। मनोरमा उनके सिरहाने की तरफ खड़ी हो गई और सोचने लगी, "निःसन्देह इस समय मेरा वार खाली नहीं जा सकता, तिलिस्मी खंजर के एक ही वार में सिर कटकर अलग हो जायगा, मगर एक के सिर कटने की आहट पाकर बाकी की दोनों जाग जायेंगी, ऐसा न होना चाहिए, इस समय इन तीनों ही को मारना मेरा काम है, अच्छा पहले इस तिलिस्मी खंजर से इन तीनों को बेहोश कर देना चाहिए।" इतना सोचकर मनोरमा ने तिलिस्मी खंजर बदन से लगाकर उन तीनों को बेहोश कर दिया और फिर सिर काटने के लिए तैयार हो गई। उसने तिलिस्मी खंजर का एक भरपूर हाथ पहले किशोरी की गर्दन पर जमाया जिससे सिर कटकर अलग हो गया, दूसरा हाथ उसने कामिनी की गर्दन पर जमाया और उसका सिर काटने के बाद कमला का सिर भी धड़ से अलग कर दिया, इसके बाद खुशी-भरी निगाहों से तीनों लाशों की तरफ देखने लगी और बोली, "इन्हीं तीनों ने दुनिया में ऊधम मचा रखा था। जिस तरह इस समय इन तीनों को मार कर मैं खुश हो रही हूँ उसी तरह बहुत जल्द वीरेन्द्र, इन्द्रजीत, आनन्द और गोपाल को भी मारकर खुशी भरी निगाहों से उनकी लाशों को देखूगी। तब दुनिया में मायारानी और मनोरमा के सिवाय कोई और भी प्रतापी दिखाई न देगा !" मनोरमा इतना कह ही चुकी थी कि पीछे की तरफ से आवाज आई--"नहींनहीं, ऐसा न हुआ है और न कभी होगा !"



8

अब हम थोड़ा-सा हाल इन्द्रदेव का बयान करते हैं जो लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, लाडिली और नकली बलभद्रसिंह को साथ लेकर अपने घर की तरफ रवाना हुए थे और जिनके साथ कुछ दूर तक भूतनाथ भी गया।

नकली बलभद्रसिंह हथकड़ी-बेड़ी से जकड़ा हुआ एक डोली पर सवार कराया गया था और कुछ फौजी सिपाही उसे चारों तरफ से घेरे हुए जा रहे थे। लक्ष्मीदेवी, कमलिनी तथा लाड़िली पालकियों पर सवार कराई गई थी और उन तीनों पालकियों के आगे-पीछे बहुत से सिपाही जा रहे थे। इन्द्रदेव एक उम्दा घोड़े पर सवार थे और भूतनाथ पैदल उनके साथ-साथ जा रहा था। दोपहर दिन चढ़े बाद जब इन लोगों का डेरा एक सुहावने जंगल में पड़ा तो भूतनाथ ने इन्द्रदेव से बिदा माँगी। इन्द्रदेव ने कहा, "मुझे तो कोई उज्र नहीं, मगर लक्ष्मीदेवी और कमलिनी से पूछ लेना जरूरी है। तुम मेरे साथ उनके पास चलो, मैं उन लोगों से तुम्हें छुट्टी दिला देता है।"

लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली की पालकियाँ एक घने पेड़ के नीचे आमनेसामने रखी हुई थी और उनके चारों तरफ कनात घिरी हुई थी। बीच में उम्दा फर्श बिछा हुआ था और तीनों बहिनें उस पर बैठी बातें कर रही थीं। इन्द्रदेव अपने साथ भूतनाथ को लिए उन तीनों के पास गये और कमलिनी की तरफ देखकर बोले, "भूतनाथ