कैद कर लिया था।
जिन्न--इसी से तो मैं पूछता हूँ कि अब तुम कहाँ जाओगे और क्या करोगे?
भूतनाथ--अगर वह दारोगा मेरे काबू में होता तब तो मैं सहज ही में पता लगा लेता मगर अब मुझे इसके लिए बहुत कुछ उद्योग करना होगा, तथापि इस समय मैं जमानिया में राजा गोपालसिंह के पास जाता हूँ, यदि उन्होंने मेरी मदद की तो अपना काम बहुत जल्द कर सकूँगा, मगर आशा नहीं कि वे मेरी मदद करेंगे, क्योंकि जब वे मेरे मुकदमे का हाल सुनेंगे तो जरूर मुझको नालायक बनायेंगे, (कुछ सोचकर) अभी तक यह भी मुझे मालूम नहीं हुआ कि आप कौन हैं, अगर जानता तो कहता कि राजा गोपालसिंह के नाम की आप एक चिट्ठी लिख दें।
जिन्न--मेरा परिचय तुम्हें सिवाय इसके और कुछ नहीं मिल सकता कि मैं जिन्न हूँ और हर जगह पहुँचने की ताकत रखता हूँ। खैर, तुम राजा गोपालसिंह के पास जाओ और उनसे मदद मांगो, मैं तुम्हें एक सिफारिशी चिट्ठी देता हूँ, तुम्हारे पास कागज- कलम-दवात है ?
भूतनाथ--जी हां, आपकी कृपा से मुझे मेरी ऐयारी का बटुआ मिल गया है और उसमें सव सामान मौजूद है।
इतना कहकर भूतनाथ रुक गया और एक पेड़ के नीचे बैठने के लिए जिन्न को कहा मगर जिन्न ने ऐसा करने से इनकार किया और आगे की तरफ इशारा करके कहा, "उस पेड़ के नीचे चलकर हम ठहरेंगे क्योंकि वहाँ हमारा घोड़ा मौजूद है।"
थोड़ी ही देर में दोनों आदमी उस पेड़ के नीचे जा पहुँचे। भूतनाथ ने देखा कि कसे-कसाए दो उम्दा घोड़े उस पेड़ की जड़ के साथ बागडोर के सहारे बँधे हैं और जिन्न ही की सूरत-शक्ल, चाल-ढाल का एक आदमी उनके पास टहल रहा है जो जिन्न के वहाँ पहुँचते ही सलाम करके एक किनारे खड़ा हो गया। जिन्न ने भूतनाथ से कलम-दवात और कागज लेकर कुछ लिखा और भूतनाथ को देकर कहा, "यह चिट्ठी राजा गोपालसिंह को देना, बस अब तुम जाओ।" इतना कहकर जिन्न एक घोड़े पर सवार हो गया, जिन्न ही की सूरत का दूसरा आदमी जो वहाँ मौजूद था, दूसरे घोड़े पर सवार हो गया और भूतनाथ के देखते-ही-देखते दूर जाकर वे दोनों उसकी नजरों से गायब हो गये। भूतनाथ तरदुद और परेशानी के सबब से उदास और सुस्त हो गया था, इसलिए थोड़ी देर तक आराम करने की नीयत से उसी पेड़ के नीचे बैठ जाने के बाद उस पत्र को पढ़ने लगा जो जिन्न ने राजा के लिए लिख दिया था मगर हजार कोशिश करने पर भी उससे वह चिट्ठी पढ़ी न गई क्योंकि सिवाय टेढ़ी-मेढ़ी और पेचीली लकीरों के किसी साफ अक्षर का उसके अन्दर भूतनाथ को पता ही न लगा।
आधे घण्टे तक आराम करने के बाद भूतनाथ उठ खड़ा हुआ और 'लामा घाटी' की तरफ रवाना हुआ।