बेगम--जो हो मगर जिस समय मैं उन लोगों के सामने जा खड़ी होऊँगी उस समय जयपाल को छुड़ा ही लाऊँगी, क्योंकि उसी की बदौलत मैं अमीरी कर रही हूँ और उसके लिए नीच से नीच काम करने को भी तैयार हैं।
जमालो--सो कैसे? क्या तुम असली बलभद्रसिंह के साथ उसका बदला करोगी?
बेगम--हाँ, मैं इन्द्रदेव और लक्ष्मीदेवी से कहँगी कि तुम जयपाल सिंह को मेरे हवाले करो तो असली बलभद्रसिंह को मैं तुम्हारे हवाले कर दूंगी। अफसोस तो इतना ही है कि गदाधरसिंह की तरह जयपालसिंह दिलावर और जीवट का आदमी नहीं है। अगर जयपालसिंह के कब्जे में बलभद्रसिंह होता तो वह थोड़ी ही तकलीफ में इन्द्रदेव या लक्ष्मीदेवी को उसका हाल बता देता।
जमालो--ठीक है मगर जब बलभद्रसिंह तुम्हारे कब्जे से निकल जायगा, तब जयपालसिंह तुम्हारी इज्जत और कदर क्यों करेगा और क्यों दबेगा ? सिवाय इसके अब तो दारोगा भी स्वतंत्र नहीं रहा जिसके भरोसे पर जयपाल कूदता था और तुम्हारा घर भरता था।
बेगम--(कुछ सोचकर) हाँ बहिन, सो तो तुम सच कहती हो। और बलभद्रसिंह को छोड़ने से पहले ही मुझे अपना घर ठीक कर लेना चाहिए, मगर ऐसा करने में भी दो बातों की कसर पड़ती है।
जमालो--वह क्या?
बेगम--एक तो वीरेन्द्रसिंह के पक्ष वाले मुझ पर यह दोष लगावेंगे कि तूने बलभभद्रसिंह को क्यों कैद कर रक्खा था, दूसरे, जब से मनोरमा के हाथ तिलिस्मी खंजर लगा है तब से उसका दिमाग आसमान पर चढ़ गया है, वह मुझसे कसम खाकर कह गई है कि 'थोड़े ही दिनों में राजा वीरेन्द्र सिंह और उनके पक्ष वालों को इस दुनिया से उठा दंगी। अगर उसका कहना सच हुआ और उसने फिर मायारानी को जमानिया की गद्दी पर ला बैठाया तो मायारानी मुझ पर दोष लगावेंगी कि तूने जयपाल को इतने दिनों तक क्यों छिपा रक्खा और दारोगा से मिलकर मुझे धोखे में क्यों डाला।
नौरतन--बेशक ऐसा ही होगा, मगर इस बात को मैं कभी नहीं मान सकती कि अकेली मनोरमा एक तिलिस्मी खंजर पाकर राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का मुकाबला करेगी और उनके पक्ष वालों को इस दुनिया से उठा देगी। क्या उन लोगों के पास तिलिस्मी खंजर न होगा?
जमालो--मैं भी यही कहने वाली थी, मैंने इस विषय पर बहुत गौर किया मगर सिवा इसके मेरा दिल और कुछ भी नहीं कहता कि राजा वीरेन्द्रसिंह, उनके लड़के और उनके ऐयारों का मुकाबला करने वाला आज दिन इस दुनिया में कोई भी नहीं है, और एक बड़े भारी तिलिस्म के राजा गोपालसिंह भी प्रकट हो गये हैं। ऐसी अवस्था में मायारानी और उनके पक्ष वालों की जीत कदापि नहीं हो सकती।
बेगम--ऐसा ही है, और गदाधरसिंह भी किसी-न-किसी तरह अपनी जान बचा ही लेगा। देखो, इतना बखेड़ा हो जाने पर भी लोगों ने गदाधरसिंह को, जिसने
च० स०-4-11