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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१८०

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और पीतल का लोटा बस यही उसकी बिसात थी। कोठरी में और कुछ भी न था। भूतनाथ को देख कर यह जिस ढंग से चौका और काँपा, उसे देखकर भूतनाथ ने गर्दन नीची कर ली और तब धीरे से कहा, "आप उठिये और जल्दी निकल चलिये, मैं आपको छुड़ाने के लिए आया हूँ।"

बलभद्रसिंह--(आश्चर्य से) क्या तू मुझे छुड़ाने के लिए आया है ! क्या यह बात सच है?

भूतनाथ जी हाँ।

बलभद्रसिंह--मगर मुझे विश्वास नहीं होता।

भूतनाथ–-खैर, इस समय आप यहाँ से निकल चलिये, फिर जो कुछ सवालजवाब या सोच-विचार करना हो, कीजियेगा।

बलभद्रसिंह--(खड़े होकर) कदाचित् यह बात सच हो ! और अगर झूठ भी हो तो कोई हर्ज नहीं, क्योंकि मैं इस कैद में रहने के बनिस्बत जल्द मर जाना अच्छा समझता हूँ!

भूतनाथ ने इस बात का कुछ जवाब न दिया और बलभद्रसिंह को अपने पीछेपीछे आने का इशारा किया। बलभद्रसिंह इतना कमजोर हो गया था कि उसे मकान के नीचे उतरना कठिन जान पड़ता था इसलिए भूतनाथ ने उसका हाथ थाम लिया और नीचे उतार कर दरवाजे के बाहर ले गया। मकान के दरवाजे के बाहर बल्कि गली भर में सन्नाटा छाया हुआ था क्योंकि यह मकान ऐसी अँधेरी और सन्नाटे की गली में था कि वहाँ शायद महीने में एक दफे किसी भले आदमी का गुजर नहीं होता होगा। दरवाज पर पहुँच कर भूतनाथ ने बलभद्रसिंह से पूछा, "आप घोड़े पर सवार हो सकते हैं!"

इसके जवाब में बलभद्रसिंह ने कहा, "मुझे उचक कर सवार होने की ताकत तो नहीं, हाँ अगर घोड़े पर बैठा दोगे तो गिरूँगा नहीं!"

भतनाथ ने शमादान मकान के भीतर चौक में रख दिया और तब बलभद्रसिह को आगे बढ़ा लेगया। थोड़ी ही दूर पर एक आदमी दो कसे-कसाये घोड़ों की बागडोर थामे बैठा हुआ था। भूतनाथ एक घोड़े पर बलभद्रसिंह को सवार करा के दूसरे घोड़े पर आप जा बैठा और अपने तीनों आदमियों को कुछ कहकर वहां से रवाना हो गया।



11

रात बहुत कम बाकी थी जब वेगम, नौरतन और जमालो की बेहोशी दूर हुई।

बेगम--(चारों तरफ देख कर) हैं, यहाँ तो बिल्कुल अंधकार हो रहा है। जमालो, तू कहाँ है?

नौरतन--जमालो नीचे गई है।

बेगम--क्यों?