पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०४

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उस औरत ने दया करके मेरी जान बचाई थी, और जहाँ मैं चाहती थी, वहाँ पहुँचा देने के लिए तैयार थी और मेरे दिल ने भी उसे माता के समान मान लिया था, इसलिए मैंने उससे कोई बात नहीं छिपाई और अपना सच्चा-सच्चा हाल शुरू से आखिर तक कह सुनाया। उसे मेरी अवस्था पर बहुत तरस आया और वह बहुत देर तक तसल्ली और दिलासा देती रही। जब मैंने उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम 'चम्पा' बताया।

इतना हाल कह इन्दिरा क्षण भर के लिए रुक गई और कुँअर आनन्दसिंह ने चौंककर पूछा, "क्या नाम बताया, चम्पा !"

इन्दिरा--जी हाँ।

आनन्दसिंह–-(गौर से इन्दिरा की सूरत देखकर) ओफ, अब मैंने तुझे पहचाना।

इन्दिरा-जरूर पहचाना होगा, क्योंकि एक दफे आप मुझे उस खोह में देख चुके हैं जहाँ चम्पा ने छत से लटकते हुए आदमी की देह काटी थी, आपने उसमें बाधा डाली थी और योगिनी का वेष धरे हाथ में अंगीठी लिए चपला ने आकर आपको और देवीसिंह को बेहोश कर दिया था।

इन्द्रजीतसिंह--(ताज्जुब से आनन्दसिंह की तरफ देखकर) तुमने वह हाल मुझसे कहा था, जब तुम मेरी खोज में निकले थे और मुसलमानिन औरत की कैद से तुम्हें देवीसिंह ने छुड़ाया था, उस समय का हाल है।

आनन्दसिंह--जी हाँ, यह वही लड़की है।

इन्द्रजीतसिंह--मगर मैंने तो सुना था कि उसका नाम सरला है!

इन्दिरा--जी हाँ, उस समय चम्पा ही ने मेरा नाम सरला रख दिया था।

इन्द्रजीतसिंह--वाह-वाह, वर्षों बाद इस बात का पता लगा।

गोपालसिंह--जरा उस किस्से को मैं भी सुनना चाहता हूँ। आनन्दसिंह ने उस समय का कुल हाल राजा गोपालसिंह को कह सुनाया और इसके बाद इन्दिरा को फिर अपना हाल कहने के लिए कहा।



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भूतनाथ और असली बलभद्रसिंह तिलिस्मी खंडहर की असली इमारत वाले नम्बर दो के कमरे में उतारे गए। इन्द्रजीतसिंह की आज्ञानुसार पन्नालाल ने उनकी बड़ी खातिर की और सब तरह के आराम का बन्दोबस्त उनकी इच्छानुसार कर दिया। पहर रात बीतने पर वे लोग हर तरह से निश्चिन्त हो गए तो इन्द्रजीतसिंह को छोड़कर बाकी सब ऐयार जो उस खंडहर में मौजूद थे भूतनाथ से गप-शप करने के लिए उसके पास आ बैठे और इधर-उधर की बातें होने लगीं। पन्नालाल ने किशोरी, कामिनी और कमला की मौत का हाल भूतताथ से बयान किया, जिसे सुनकर बलभद्रसिंह ने हद से ज्यादा अफसोस