पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२३४

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इन्द्रजीतसिंह--वाह-वाह, तब तो बहुत ही नजदीक है, (इन्द्रदेव से) मेरी तरफ से कृष्ण जिन्न को प्रणाम कर बहुत धन्यवाद दीजिएगा, क्योंकि उन्होंने बड़ी चालाकी से किशोरी, कामिनी और कमला को बचा लिया।

इन्द्रदेव--बहुत अच्छा।

इन्द्रजीतसिंह--आप तो असली बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए घर से निकले थे, उनका

इन्द्रजीतसिंह--(राजा गोपालसिंह की तरफ इशारा करके) आप कहते हैं कि नकली बलभद्रसिंह ने तुम्हें धोखा दिया, तुम अब उनकी खोज मत करो, क्योंकि भूतनाथ ने असली बलभद्रसिंह का पता लगा लिया और उन्हें छुड़ाकर चुनारगढ़ ले गया।

इन्द्रजीतसिंह--(गोपालसिंह से) क्या यह बात सच है?

गोपालसिंह--हाँ, कृष्ण जिन्न ने मुझे यह भी लिखा था।

इन्द्रजीतसिंह--तब तो इस खबर में किसी तरह का शक नहीं हो सकता। इसके बाद दुनिया के पुराने नियमानुसार और बहुत दिनों से बिछड़े हुए प्रेमियों के मिलने पर जैसा हुआ करता है, उसी के मुताबिक इन्द्रदेव और सरयू में कुछ बातें हुईं, इन्दिरा ने भी मां से कुछ बातें कीं, और तब इन्दिरा और इन्द्रदेव को साथ लेकर राजा गोपालसिंह कमरे के बाहर हो गये।



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किशोरी, कामिनी और कमला जिस मकान में रखी गई थीं, वह नाम ही को तिलिस्मी मकान था। वास्तव में न उस मकान में कोई तिलिस्म था और न किसी तिलिस्म से उसका सम्बन्ध ही था। तथापि वह मकान और स्थान बहुत सुन्दर और दिलचस्प था। ऊँची-ऊँची चार पहाड़ियों के बीच में बीस-बाईस बीघे के लगभग जमीन थी जिसमें तरह-तरह के कुदरती गुलबूटे लगे हुए थे जो केवल जमीन ही की तरावट से सरसब्ज बने रहते थे। पूरब की तरफ वाली पहाड़ी के ऊपर साफ और मीठे जल का झरना गिरता था जो उस जमीन में चक्कर देता हुआ पश्चिम की तरफ की पहाड़ी के नीचे जाकर लोप हो जाता था और इस सबब से वहाँ की जमीन हमेशा तर बनी रहती थी। बीच में छोटा-सा दो मंजिल का मकान बना हुआ और उत्तर की तरफ वाली पहाड़ी पर सौ सवा सौ हाथ ऊँचे जाकर एक छोटा-सा बँगला और भी था। शायद बनाने वाले ने इसे जाड़े के मौसम के लिए आवश्यक समझा, क्योंकि नीचे वाले मकान में तरी ज्यादा रहती थी। किशोरी, कामिनी और कमला इसी बँगले में रहती थीं और उनकी हिफाजत के लिए जो दो-चार सिपाही और लौंडियाँ थीं, उन सभी का डेरा नीचे मकान में था, खाने-पीने का सामान तथा बन्दोबस्त भी उसी में था।

उन तीनों की हिफाजत के लिए जो सिपाही और लौंडियाँ वहाँ थीं उन सभी की