पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/५२

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और खातिरदारी के साथ रखू, मगर जब तुमने इन्साफ होने के पहले भागने का उद्योग किया तो लाचार ऐसा करना पड़ा।

इन्द्रदेव--नहीं-नहीं, अगर ये वास्तव में मेरे दोस्त बलभद्रसिंह हैं तो इनके साथ ऐसा न करना चाहिए।

बलभद्रसिंह--मैं वास्तव में बलभद्रसिंह हूँ। क्या लक्ष्मीदेवी मुझे नहीं पहचानती जिसके साथ मैं एक ही कैदखाने में कैद था ?

इन्द्रदेव--लक्ष्मीदेवी तो खुद तुमसे दुश्मनी कर रही है। वह कहती है कि यह बलभद्रसिंह नहीं है बल्कि जयपाल सिंह है।

इतना सुनते ही नकली बलभद्रसिंह चौंक उठा और उसके चेहरे पर डर तथा घबराहट की निशानी दिखाई देने लगी। वह समझ गया कि इन्द्रदेव मुझ पर दया करने के लिए नहीं आया, बल्कि मुझे सताने के लिए आया है। कुछ देर तक सोचने के बाद उसने इन्द्रदेव से कहा-

बलभद्रसिंह--यह बात लक्ष्मीदेवी तो नहीं कह सकती, बल्कि तुम ही स्वयं कहते हो।

इन्द्रदेव--अगर ऐसा भी हो तो क्या हर्ज है ? तुम इस बात का क्या जवाब देते हो?

बलभद्रसिंह--झूठी बात का जो कुछ जवाब हो सकता है, वही मेरा जवाब है।

इन्द्रदेव--तो क्या तुम जयपालसिंह नहीं हो ?

बलभद्रसिंह--मैं जानता भी नहीं कि जयपाल किस जानवर का नाम है। इन्द्रदेव-अच्छा, जयपाल नहीं तो बालेसिंह ! बालेसिंह का नाम सुनते ही नकली बलभद्रसिंह फिर घबरा गया और मौत की भयानक सूरत उसकी आँखों के सामने दिखाई देने लगी। उसने कुछ जवाब देने का इरादा किया मगर बोल न सका। उसकी ऐसी अवस्था देखकर इन्द्रदेव ने तेजसिंह से कहा, "दारोगा और मायारानी को भी इस कोठरी में लाना चाहिए जिसमें मेरी बातों से तीनों बेईमानों के दिल का पता लगे।" यह बात तेजसिंह ने भी पसन्द की और बात की बात में तीनों कैदी एक साथ कर दिए गये और तब इन्द्रदेव ने दारोगा से पूछा, "आपको इस आदमी का नाम बताना होगा जो आपके बगल में कैदियों की तरह बैठा हुआ है।"

दारोगा--मैं इसे नहीं जानता और जब वह स्वयं कह रहा है कि बलभद्रसिंह है तो मुझसे क्यों पूछते हो?

इन्द्रदेव--तो क्या आप बलभद्रसिंह की सूरत-शक्ल भूल गये जिसकी लड़की को आपने मुन्दर के साथ बदल कर हद से ज्यादा दुःख दिया?

दारोगा--मुझे उसकी सूरत याद है मगर जब वह मेरे यहाँ कैद था तब आप ही ने इसे जहर की पुड़िया खिलाई थी जिसके असर से निःसन्देह इसे मर जाना चाहिए था मगर न मालूम क्योंकर बच गया, फिर भी उस जहर की तासीर ने इसका तमाम बदन बिगाड़ दिया और इस लायक न रक्खा कि कोई पहचाने और बलभद्रसिंह के ना से इसे पुकारे।