इन्द्रदेव ने पुकार कर कहा, "अभी कौन बोला था ?
फिर आवाज आई--हम !
इन्द्रदेव--तुमने क्या कहा था ?
आवाज--होशियार, होशियार।
इन्द्रदेव--क्यों?
आवाज--दुश्मन आ पहुंचा और तुम लोग मुसीबत में फंसना चाहते हो।
इन्द्रदेव--तुम कौन हो ?
आवाज--कोई तुम लोगों का हितू।
इन्द्रदेव--कैसे समझा जाय कि तुम हम लोगों के हितू हो और जो कुछ कहाँ हो वह सच है ?
आवाज--हितू होने का सबूत इस समय देना कठिन है मगर इस बात का सबूत मिल सकता है कि हमने जो कुछ कहा है वह सच है।
इन्द्रदेव--इसका क्या सबूत है ?
आवाज-–बस इतना ही कि इस तहखाने से निकलने के सब दरवाजे बन्द हो गये और अब आप लोग बाहर नहीं जा सकते।
अब तो सभी का कलेजा दहल उठा और आश्चर्य से एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। तेजसिंह ने देवीसिंह और भैरोंसिंह की तरफ देखा और वे दोनों उसी समय इस बात का पता लगाने चले गये कि तहखाने के दरवाजे वास्तव में बन्द हो गए या नहीं, इसके बाद इन्द्रदेव ने फिर छत की तरफ मुंह करके कहा, "हाँ, तो क्या तुम बता सकते हो कि वे लोग कौन हैं जिन्होंने तहखाने में हम लोगों को घेरने का इरादा किया है ?"
आवाज--हाँ, बता सकते हैं।
इन्द्रदेव--अच्छा उनके नाम बताओ।
आवाज--कमलिनी के तिलिस्मी मकान से छूटकर भागे शिवदत्त, माधवी और मनोरमा तथा उन्हीं तीनों की मदद से छूटा हुआ दिग्विजयसिंह का लड़का कल्याणसिंह, जो इस तिलिस्मी तहखाने का हाल उतना ही जानता है जितना उसका बाप जानता था।
इन्द्रदेव--वह तो चुनार में कैद था।
आवाज--हाँ, कैद था मगर छुड़ाया गया जैसा कि मैंने कहा।
इन्द्रदेव--तो क्या वे लोग हम सभी को नुकसान पहुँचा सकते हैं?
आवाज--सो तो तुम्हीं लोग जानो, मैंने केवल तुम लोगों को होशियार कर दिया, अब जिस तरह अपने को बचा सको, बचाओ।
इन्द्रदेव--(कुछ सोचकर) उन चारों के साथ और कोई भी है ?
आवाज--हाँ, एक हजार के लगभग फौज भी इसी तहखाने की किसी गुप्त राह से किले के अन्दर घुस कर अपना दखल जमाना चाहती है।
इन्द्र देव--इतनी मदद उन सभी को कहाँ से मिली?
आवाज--इसी कम्बख्त मायारानी की बदौलत।
इन्द्रदेव--क्या तुम भी उन्हीं लोगों के साथ हो?