पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/६१

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भूतनाथ–बेशक कल्याणसिंह उन लोगों को तहखाने की गुप्त राह से किले के अन्दर ले जा सकता है और उसका नतीजा निःसन्देह बहुत बुरा होगा।

सरयू--मैं भी यही सोचता हूँ, तिस पर मजा यह है कि वे लोग अकेले नहीं हैं, बल्कि हजार फौजी सिपाहियों को भी उन लोगों ने अपना साथी बनाया है।

भूतनाथ--और रोहतासगढ़ के तहखाने में इससे दूने आदमी भी हों, तो सहज ही में समा सकते हैं, मगर मेरे दोस्त, यह खबर तुमने कहाँ से और क्योंकर पाई ?

सरयू--मेरे चेलों ने जो प्रायः बाहर घूमा करते हैं, यह खबर मुझे सुनाई है।

भूतनाथ–तो क्या यह मालूम नहीं हुआ कि शिवदत्त, माधवी, मनोरमा और कल्याणसिंह तथा उनके साथी किस राह से जा रहे हैं और कहाँ हैं ?

सरयू--हाँ, यह भी मालूम हुआ है, वे लोग बराबर घाटी की राह से और जंगल ही जंगल जा रहे हैं।

भूतनाथ—(कुछ देर तक गौर करके)मौका तो अच्छा है!

सरयू--बेशक अच्छा है।

भूतनाथ--तब?

सरयू-चलो, हम-तुम दोनों मिलकर कुछ करें !

भूतनाथ--मैं तैयार हूँ, मगर इस बात को सोच लो कि ऐसा करने पर तुम्हारा मलिक्का रंज तो नहीं होगा!

सरयू--सब सोचा-समझा है, हमारा मालिक भी रोहतासगढ़ ही गया हुआ है और वह भी राजा वीरेन्द्रसिंह का पक्षपाती है।

भूतनाथ--खैर, तो अब विलम्ब करना अपने अमूल्य समय को नष्ट करना है। (ऊंची साँस लेकर) ईश्वर न करे शिवदत्त के हाथ कहीं किशोरी लग जाये, अगर ऐसा हुआ तो अबकी दफे वह बेचारी कदापि न बचेगी।

सरयू--मैं भी यही सोच रहा हूँ, अच्छा तो अब तैयार हो जाओ, मगर मैं नियमा- नुसार तुम्हारी आँखों पर पट्टी बाँध कर बाहर ले जाऊँगा।

भूतनाथ--कोई चिन्ता नहीं, हाँ, यह तो कहो कि मेरे ऐयारों के बटुए में कई मसालों की कमी हो गई है, क्या तुम उस पूरा कर सकते हो?

सरयू--हाँ-हाँ, जिन-जिन चीजों की जरूरत हो ले लो, यहाँ किसी बात की कमी नहीं है।


13

दोपहर दिन का समय है। गर्म-गर्म हवा के झपेटों से उड़ी हुई जमीन की मिट्टी केवल आसमान ही को गेंदला नहीं कर रही है बल्कि पथिकों के शरीरों को भी अपना- सा करती और आँखों को इतना खुलने नहीं देती है जिसमें रास्ते को अच्छी तरह देखकर