पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/८७

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इसके बाद बाजे का बोलना बन्द हो गया और फिर किसी तरह की आवाज न आई। कंअर इन्द्रजीतसिंह जो कुछ लिख चुके थे उस पर गौर करने लगे । यद्यपि वे बातें बेसिर-पैर की मालूम हो रही थीं मगर थोड़ी ही देर में उनका मतलब इन्द्रजीत- सिंह समझ गए, जब आनन्दसिंह को समझाया तो वे भी बहुत खुश हुए और बोले, “अब कोई हर्ज नहीं, हम लोगों का कोई काम अटका न रहेगा, मगर वाह रे कारीगरी !"

इन्द्रजीतसिंह--निःसन्देह ऐसी ही बात है, मगर जब तक हम लोग उस ताली को न पा लें, इस कमरे के बाहर नहीं होना चाहिए, कौन ठिकाना अगर किसी तरह दर- वाजा बन्द हो गया और यहाँ न आ सके तो बड़ी मुश्किल होगी।

आनन्दसिंह--मैं भी यही मुनासिब समझता हूँ।

इन्द्रजीतसिंह--अच्छा, तब इस तरफ आओ।

इतना कहकर कुंअर इन्द्रजीतसिंह उस बड़ी तस्वीर की तरफ बढ़े और आनन्द- सिंह उनके पीछे चले।

उस आवाज का मतलब जो बाजे में से सुनाई दी थी, इस जगह लिखने की कोई आवश्यकता नहीं जान पड़ती क्योंकि हमारे पाठक यदि उन शब्दों पर जरा भी गौर करेंगे तो मतलब समझ जायेंगे, कोई कठिन बात नहीं है।



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कल्याणसिंह के ताली बजाने के साथ ही बहुत से आदमी हाथों में नंगी तलवारें लिए हुए उसी कोठरी में से निकल आये जिसमें से कल्याणसिंह निकला था, मगर शेर- अली खाँ की मदद के लिए केवल एक वही नकाबपोश उस कमरे में था, जो दरवाजा खोलने के साथ ही उन्हें दिखाई दिया था। विशेष बातचीत का समय तो नहीं मिला मगर नकाबपोश ने शेरअलीखाँ से इतना अवश्य कहदिया कि "आप अपनी मदद के लिए अभी किसी को भी न बुलाइए, इन लोगों के लिए अकेला मैं ही बहुत हूँ, यदि मेरी बात पर आपको विश्वास न हो तो जल्दी से इस कमरे के बाहर हो जाइए

यद्यपि सैकड़ों आदमियों के मुकाबले में केवल एक नकाबपोश का इतना बड़ा हौसला दिखाना विश्वास करने योग्य न था, मगर शेरअली खाँ खुद भी जवांमर्द और दिलेर आदमी था, इस सबब से या शायद और किसी सबब से उसने नकाबपोश की बातों पर विश्वास कर लिया और किसी को बुलाने के लिए उद्योग न करके अपने बिछौने के नीचे से तलवार निकालकर लड़ने के लिए स्वयं भी तैयार हो गया।

यह नकाबपोश असल में भूतनाथ था जो सरयूसिंह के कहे मुताबिक शेरअली खाँ के पास आया था। उसे विश्वास था कि शेरअली खाँ कल्याणसिंह की मदद के लिए तैयार हो जायगा मगर जब उसने कमरे के बाहर से उन दोनों की बातें सुनीं और शेर- अली खाँ को नेक, ईमानदार, इन्साफपसन्द और सच्चा बहादुर पाया तो बहुत प्रसन्न हुआ और जी-जान से उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गया। हमारे पाठक यह