पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१२५

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दारोगा––बेशक, कोई हर्ज नहीं मैं अभी बावली से जल लाकर और इनका चेहरा धोकर अपने को सच्चा साबित करता हूँ।

इतना कहकर दारोगा जोश दिखाता हुआ बावली की तरफ चला गया और फिर लौटकर न आया।

पाठक, आप समझ सकते हैं कि नानक की बातों ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के कोमल कलेजों के साथ कैसा बर्ताव किया होगा? आनन्दी और इन्द्रानी वास्तव में मायारानी और माधवी हैं। इस बात ने दोनों कुमारों को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया और दोनों अपने किए पर पछताते हुए क्रोध और लज्जा-भरी निगाहों से बराबर एक-दूसरे को देखते हुए मन में सोचने लगे कि "हाय, हम दोनों से कैसी भूल हो गई! यदि कहीं यह हाल कमलिनी और लाड़िली तथा किशोरी और कामिनी को मालूम हो गया तो क्या वे सब की सब मारे तानों के हम लोगों के कलेजों को छलनी न कर डालेंगी! अफसोस, उस बुड्ढे दारोगा ही ने नहीं बल्कि हमारे सच्चे साथी भैरोंसिंह ने भी हमारे साथ दगा की। उसने कहा था कि इन्द्रानी ने मेरी सहायता की थी इत्यादि पर यह कदापि सम्भव नहीं कि मायारानी भैरोंसिंह की सहायता करे। अफसोस, क्या अब यह जमाना आ गया कि सच्चे ऐयार भी अपने मालिकों के साथ दगा करें।"

कुछ देर तक इसी तरह की बातें दोनों कुमार सोचते और दारोगा के आने का इन्तजार करते रहे। आखिर आनन्दसिंह ने अपने बड़े भाई से कहा, "मालूम होता है कि वह कम्बख्तं बुड्ढा दारोगा डर के मारे भाग गया, यदि आज्ञा हो तो मैं जाकर पानी लाने का उद्योग करूँ।" इसके जवाब में कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने पानी लाने का इशारा किया और आनन्दसिंह बावली की तरफ रवाना हुए।

थोड़ी ही देर में कुँअर आनन्दसिंह अपना पटूका पानी से तर कर ले आए और यह कहते हुए इन्द्रजीतसिंह के पास पहुँचे––"बेशक दारोगा भाग गया।"

उसी पटूके के जल से दोनों लाशों का चेहरा साफ किया गया और उसी समय मालूम हो गया कि नानक ने जो कुछ कहा सब सच है, अर्थात् वे दोनों लाशें वास्तव में मायारानी तथा माधवी की ही हैं।

अब दोनों भाइयों के रंज और गम की कोई हद न रही। सकते की हालत में खड़े हुए पत्थर की मूरत की तरह वे उन दोनों लाशों की तरफ देख रहे थे। कुछ देर के बाद कुँअर आनन्दसिंह ने एक लम्बी साँस लेकर कहा, "वाह रे भैरोंसिंह, जब तुम्हारा यह हाल है तब हम लोग किस पर भरोसा कर सकते हैं!"

इसके जवाब में पीछे की तरफ से आवाज आई, "भैरोंसिंह ने क्या कसूर किया है जो आप उस पर आवाज कस रहे हैं!"

दोनों कुमारों ने घूम कर देखा तो भैरोंसिंह पर निगाह पड़ी। भैरोंसिंह ने पुनः कहा, "जिस दिन आप इस बात को सिद्ध कर देंगे कि भैरोंसिंह ने आपके साथ दगा की उस दिन जीते जी भैरोंसिंह को इस दुनिया में कोई भी न देख सकेगा।"

इन्द्रजीतसिंह––आशा तो ऐसी ही थी, मगर आज-कल तुम्हारे मिजाज में कुछ फर्क आ गया है।