पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१३

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कैद से छूटने के बाद लीला को साथ लिए हुए मायारानी ऐसी भागी कि उसने पीछे की तरफ फिर के भी नहीं देखा। आँधी और पानी के कारण उन दोनों को भागने में बड़ी तकलीफ हुई, कई दफा वे दोनों गिरी और चोट भी लगी, मगर प्यारी जान को बचा कर ले भागने के खयाल ने उन्हें किसी तरह दम न लेने दिया। दो घण्टे के बाद आँधी-पानी का जोर जाता रहा, आसमान साफ हो गया और चन्द्रमा भी निकल आया, उस समय उन दोनों को भागने में सुभीता हुआ और सवेरा होने तक ये दोनों बहुत दूर निकल गई।

मायारानी यद्यपि खूबसूरत थी नाजुक थी, और परले सिरे की अमीरी कर चुकी थी मगर इस समय ये सब बातें हवा हो गई। पैरों में छाले पड़ जाने पर भी उसने भागने में कसर न की और सवेरा हो जाने पर भी दम न लिया, बराबर भागती ही चली गई। दूसरा दिन भी उसके लिए बहुत अच्छा था, आसमान पर बदली छाई हुई थी और धूप को जमीन तक पहुँचने का मौका नहीं मिला था। अब मायारानी बातचीत करती हुई और पिछली बातें लीला को सुनाती हुई रुक कर चलने लगी। थोड़ी दूर जाती फिर जरा दम ले लेती, पुनः उठकर चलती और कुछ देर बाद दम लेने के लिए बैठ जाती। इसी तरह दूसरा दिन भी मायारानी ने सफर ही में बिता दिया और खाने-पीने की कुछ विशेष परवाह न की। संध्या होने के कुछ पहले वे दोनों एक पहाड़ी की तराई में पहुंची जहां साफ पानी का सुन्दर चश्मा बह रहा था और जंगली बेर तथा मकोय के पेड़ भी बहुतायत से थे। वहाँ पर लीला ने मायारानी से कहा कि अब डरने तथा चलते-चलते जान देने की कोई जरूरत नहीं। अब हम लोग बहुत दूर निकल आये हैं और ऐसे रास्ते से आये हैं कि जिधर से किसी मुसाफिर की आमद-रफ्त नहीं होती अतः अब हम को बेफिक्री के साथ आराम करना चाहिए। यह जगह इस लायक है कि हम लोग खा पीकर अपनी आत्मा को सन्तोष दे लें और अपनी-अपनी सूरतें भी अच्छी तरह बदल कर पहचाने जाने का खटका मिटा लें!"

लीला की बात मायारानी ने स्वीकार की और चश्मे के पानी से हाथ-मुँह धोने और जरा दम लेने के बाद सबके पहले सूरत बदलने का बन्दोबस्त करने लगी क्योंकि दिन नाममात्र को रह गया था और रात हो जाने पर बिना रोशनी के सहारे यह काम अच्छी तरह नहीं हो सकता था।

सुरत––शक्ल के हेर-फेर से छुट्टी पाने के बाद दोनों ने जंगली बेर और मकोय को अच्छे-से-अच्छा मेवा समझकर भोजन किया और चश्मे का जल पीकर आत्मा को संतोष दिया, तब निश्चिन्त होकर बैठी और यों बातचीत करने लगीं––

मायारानी––अब जरा जी ठिकाने हुआ, मगर शरीर चूर-चूर हो गया है। खैर, किसी तरह तेरी बदौलत जान बच गई, नहीं तो मैं हर तरह से नाउम्मीद हो चुकी थी और राह देखती थी कि मेरी जान किस तरह ली जाती है।