भैरोंसिंह––(कमलिनी से) हाँ, खूब याद आया, हमने सुना था कि उस समय जब हम लोग शाहदरवाजा बन्द हो जाने के कारण दुःखी हो रहे थे, तब आपने ही विचित्र ढंग से वहाँ पहुँचकर हम लोगों की सहायता की थी। आपको इन बातों की खबर कैसे मिली थी?[१]
कमलिनी––(लक्ष्मीदेवी की तरफ इशारा करके)उन दिनों ये ऐयारी कर रही थीं और इन्होंने ही उन बातों की खबर पहुँचाई थी तथा यह भी कहा था कि "खँडहर वाली बावली साफ हो गई है।" उस बावली में पहुँचने का रास्ता उसी योगिराज की समाधि के पास ही से है। अगर वह बावली खुदकर साफ न हो गई होती तो मैं शाहदरवाजा खोल न सकती क्योंकि ऊपर की तरफ से खँडहर के अन्दर पहुँचना कठिन हो रहा था और भीतर मायारानी के आदमी उस तहखाने में जा पहुँचे थे। वह भी हम लोगों की जिन्दगी का बड़ा कठिन समय था।
कमला––उसी समय राजा शिवदत्त भी वहाँ आकर...
कमलिनी––हाँ, उस समय भी भूतनाथ ने बड़ी मदद दी। रूहा बनकर अगर वह राजा शिवदत्त को पकड़ न लिए होता तो गजब ही हो जाता।[२]
भैरोंसिंह––मैं तो कुमार की जिन्दगी से बिल्कुल ही नाउम्मीद हो गया था।
कमलिनी––(कुमार से) हाँ, यह तो बताइये कि आप वहाँ किस तरह पहुँचाये गये थे? इसमें तो कोई शक नहीं कि आपको मायारानी के आदमियों ने गिरफ्तार किया था मगर इस बात का पता अभी तक न लगा कि उस मकान के अन्दर आप तथा देवीसिंह वगैरह ने क्या देखा कि हँसते-हँसते उसके अन्दर कूद गये[३] और कूदने के बाद क्या हुआ?
इन्द्रजीतसिंह––कूद पड़ने के बाद फिर मुझे तन-बदन की सुध न रही और यही हाल उन सबका भी हुआ जो मेरे पहले उसके अन्दर कूद चुके थे, मगर यह अभी न बताऊँगा कि उसके अन्दर कौन-सी हँसाने वाली चीज थी।
कमलिनी––यही बात हम लोगों ने जब देवीसिंह से पूछी थी तो उन्होंने भी इनकार करके कहा था कि "माफ कीजिए, उस विषय में तब तक कुछ न कहूँगा जब तक इन्द्रजीतसिंह मेरे सामने मौजूद न होंगे, क्योंकि उन्होंने इस बात को छिपाने के लिए मुझे सख्त ताकीद कर दी है।[४] ताज्जुब है कि आपने अपने साथियों को भी इस तरह की ताकीद कर दी और आज स्वयं भी उसको बताने से इनकार करते हैं!
इन्द्रजीतसिंह––उसमें कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके बताने से मुझे परहेज हो मगर मैं चाहता हूँ कि वही तमाशा तुम लोगों को तथा और अपने सबको दिखाकर बताऊँ कि उस मकान के अन्दर बस यही था, निःसन्देह तुम लोगों की भी वैसी दशा होगी।
कमलिनी––तो आज ही तमाशा क्यों नहीं दिखाते?